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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८० न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् न्यायकन्दली सत्त्वं क्षणिके व्यवतिष्ठते । तथा च सति सुलभं क्षणिकत्वानुमानं यत् सत् तत् क्षणिकं, सन्ति च द्वादशायतनानीति । अत्रोच्यते - न सत्वात् क्षणिकत्वसिद्धिः, तस्य विपक्षव्यावृत्त्यनवगमात् । यत्क्रमयौगपद्यरहितं तदसत् यथा वाजिविषाणम्, क्रमयौगपद्यरहितञ्चाक्षणिकमिति बाधकेनाक्षणिकात् क्रमयौगपद्यव्यावृत्त्या सत्त्वव्यतिरेकप्रतीतिरिति चेन्न, अक्षणिकस्याप्रतीतौ सत्त्वस्य ततो व्यावृत्तिप्रतीत्यसम्भवात् यथा प्रतीयमाने जले तत्र वह्निधूमयोरभावप्रतीतिः, एवमक्षणिके दृश्यमाने क्रमयौगपद्याभावात्सत्त्वाभाव: प्रत्येतव्यः । न चाक्षणिको नाम कश्चिदस्ति भवताम्, यथाऽप्रतीयमानेऽपि पिशाचे ततोऽन्यव्यावृत्तिः प्रतीयते जनकत्व नहीं है । अतः सत्त्व के व्यापक क्रमकारित्व युगपत्कारित्व ये दोनों ही अक्षणिक स्थिर वस्तुओं में नहीं रह सकते ( अतः अक्षणिक स्थिर किसी भी वस्तु की सत्ता नहीं है ) फलतः सत्त्व क्षणिक वस्तुओं में ही नियमित हो जाता है । अत: सभी वस्तुओं में क्षणिकत्व का यह अनुमान सुलभ हो जाता है कि जो सत् है अवश्य ही क्षणिक है, जैसे कि द्वादश आयतन । ( उ० ) हम लोग इस आक्षेप का यह समाधान करते हैं कि सत्त्व हेतु से क्षणिकत्व की सिद्धि नहीं हो सकती है, क्योंकि इस अनुमान के हेतु में 'विपक्षव्यावृत्ति' अर्थात् विपक्षासत्त्व का ज्ञान नहीं हो सकता है । ( प्र० ) " जिसमें न क्रमशः कार्य के उत्पादन का सामर्थ्य है अर्थात् क्रमकारित्व है और न कार्यों को एक ही समय में उत्पादन का सामर्थ्य अर्थात् युगपत्कारित्व है वह सत् भी नहीं है जैसे कि घोड़े की सींग” इस बाधक अनुमान के वल से स्थिर वस्तुओं से सत्त्व हट जाता है, अतः स्थिर वस्तुओं में सत्त्व के अभाव की प्रतीति होती है । अक्षणिक वस्तु ही प्रकृत में विपक्ष है । अत. अक्षणिक वस्तु रूप विपक्ष के ज्ञान के विना विपक्षव्यावृति का सम्भव नहीं है । प्रतीत होनेवाले जल में ही वह्नि और घूम के अभाव की प्रतीति होती है । इसी प्रकार जब अक्षणिक कोई वस्तु देखी जायेगी तब उस में क्रम और योगपद्य के न होने . से सत्त्व का अभाव समझेंगे । किन्तु आप ( बौद्ध ) के मत में कोई भी वस्तु अक्षणिक ज्ञान Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal [ द्रव्ये आत्म १. अभिप्राय यह है कि वही हेतु साध्य का ज्ञापक हो सकता है जिसमें ( १ ) पक्ष सत्त्व ( २ ) सपक्षसश्व ( ३ ) विपक्षासत्त्व ( ४ ) अबाधितत्व एवं ( ५ ) असत्प्रतिपक्षितत्व ये पाँच रूप निर्णीत रहे । प्रकृत क्षणिकत्व के साधक सत्त्व हेतु में विपक्षध्यावृत्ति या विपक्षासत्त्व का सकता है, क्योकि बौद्धगण संसार की सभी वस्तुओं में क्षणिकत्व का अतः सभी अन्तर्गत आ गये हैं । विपक्ष के लिए कोई बचा ही नहीं अतः प्रकृत में विपक्ष की अप्रसिद्धि के कारण विपक्षव्यावृत्ति भी अप्रसिद्ध ही है । अतः साध्यसाधक हेतु का ज्ञान न होने के कारण प्रकृतानुमान ठीक नहीं है । निर्णय नहीं हो साधन करते हैं । पदार्थ पक्ष के हो ।
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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