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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १५६ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [ द्रव्ये काल प्रशस्तपादभाष्यम् भावाद्यदत्र निमित्तं स कालः । सर्वकार्याणाञ्चोत्पत्तिस्थितिविनाशहेतुस्तद्व्यपदेशात् । क्षणलवनिमेषकाष्ठाकलामुहूर्तयामाहोरात्रार्द्ध मासमासत्वंयनसंवत्सरयुगकल्पमन्वन्तरप्रलयमहाप्रलयव्यवहारहेतुः। प्रतीतिगत इन वैलक्षण्यों का कोई कारण अवश्य है, उसी को 'काल' कहते हैं। यह सभी उत्पत्तियों और विनाशों का कारण है, क्योंकि सभी उत्पत्ति और विनाश काल से युक्त होकर ही कहे जाते हैं। यह क्षण, लव, निमेष, काष्ठा, कला, मुहूर्त, याम, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष, युग, कल्प, मन्वन्तर, प्रलय और महाप्रलय इन सबों के व्यवहार का कारण है। न्यायकन्दली लिङ्गम् । ननु कालस्याप्रत्यक्षत्वात् तेन सह परापरादिप्रत्ययानां व्याप्तिग्रहणाभावात् कुतो लिङ्गत्वमत आह-तेषामिति। तेषां युगपदादिप्रत्ययानां विषयेषु द्रव्यादिषु पूर्वप्रत्ययविलक्षणानां द्रव्यादिप्रत्ययविलक्षणानामुत्पत्तावन्यस्य निमित्तस्याभावात्। एतदुक्तं भवति-द्रव्यादिषु विषयेषु पूर्वापरादिप्रत्यया जायन्ते, न चैषां द्रव्यादयो निमित्तं तत्प्रत्ययविलक्षणत्वात्, न च निमित्तमन्तरेण कार्यस्योत्पत्तिरस्ति, तस्माद्यदत्र निमित्तं स काल इति । आदित्यपरिवर्तनाल्पीयस्त्वभूयस्त्वनिबन्धनो युवस्थविरयोः परापरव्यवहार इत्येके, तदयुक्तम्, आदित्यपरिवर्तनस्य युवस्थविरयोः सम्बन्धाभावादसम्बद्धस्य निमित्तत्वे चातिप्रसङ्गात् । इन दोनों की प्रतीतियाँ भी काल की ज्ञापक हेतु हैं। (प्र०) काल का तो प्रत्यक्ष नहीं होता है, अतः उन प्रतीतियों के साथ उसकी व्याप्ति गृहीत नहीं हो सकती हैं। अतः वे किस प्रकार हेतु हो सकती हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर 'तेषाम्' इत्यादि से देते हैं। 'तेषाम' काल के ज्ञापक उन प्रतीतियों के विषय द्रव्यादि से विलक्षण इस ज्ञान की उत्पत्ति में काल को छोड़कर और कोई भी कारण नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि द्रव्यादि विषयों में परत्व और अपर स्व की प्रतीतियाँ होती हैं। उनके कारण वे द्रव्य नहीं हैं, क्योंकि केवल द्रव्यादि विषयक प्रतीतियों से परत्वादि विषयक प्रतीति विलक्षण आकार की होती है । निमित्त के बिना कार्य की उत्पत्ति सम्भव नहीं है। तस्मात् उन ( विलक्षण ) प्रतीतियों का कारण ही 'काल' है। कोई कहते हैं कि सूर्य की गति की अधिकता एवं न्यूनता से ही वृद्ध और युवक में परत्व एवं अपरत्व की प्रतीति होती है, किन्तु यह ठीक नहीं है। क्योंकि सूर्य की गति के साथ उस वृद्ध और युवक का कोई भी सम्बन्ध नहीं है । असम्बद्ध पदार्थ को कारण मानने से अतिप्रसङ्ग होगा। For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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