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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १३८ न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम न्यायकन्दली एवं तर्हि का गतिरत्र बुद्धिमत्कर्तृ पूर्वकत्वसामान्यस्य ? अगतिरेव, उभयोरपि शरीरित्वाशरीरित्वविशेषयोरनुपपत्तेः, निविशेषस्य सामान्यस्य सिद्धयभावात् । किमनुमानस्य दूषणम् ? न किञ्चित्, पुरुष एवायं विशेषाभावाच्छशविषाणायमाने साधनानहें सामान्ये साधनं प्रयुञ्जानो निगृह्यते, यथा कश्चिनिशितं कृपाणमच्छेद्यमाकाशं प्रति व्यापारयन् । अथानुमानदूषणं विना न तुष्यति भवान्, तदिदमशरीरिपूर्वकत्वानुमानं व्याप्तिग्राहकप्रमाणबाधितत्वात् कालात्ययापदिष्टम्, व्याप्तिबलेन चाभिप्रेतमशरीरित्वविशेषं विन्धद् विशेषविरुद्धम्, ततश्च विरुद्धावान्तरविशेष एवेति पूर्वपक्षसङ्क्षपः । अत्र प्रतिसमाधिः-किं शरीरित्वमेव कर्तृत्वमुत परिदृष्टसामर्थ्यकारकप्रयोजकत्वम् ? न तावच्छरीरित्वमेव कर्तृत्वम्, सुषुप्तस्योदासीनस्य च कर्तृत्वनहीं होता है, उसी प्रकार शरीरव्यापार के बिना केवल प्रयत्न से भी कार्य नहीं होता। (प्र०) कथित अनुमान से पृथिव्यादि महाभूतों में सिद्ध बुद्धिविशिष्टकर्तृ. जन्यत्व की क्या गति होगी? ( उ०) कोई भी गति नहीं, ( क्योंकि बुद्धिमत्कर्तृजन्यत्वरूप ) सामान्य के विशेषभूत शारीरिकतजन्यत्व और अशरीरिकर्तृजन्य त्व इन दोनों में से किसी भी विशेष की सिद्धि नहीं होगी। एवं विशेषों से शून्य सामान्य की सिद्धि भी सम्भव नहीं है। (प्र०) उस सामान्य विषयक अनुमान में दोष क्या है ? ( उ०) कोई भी दोष नहीं है, चूंकि विशेषों में से किसी की भी सिद्धि नहीं है, अतः आकाशकुसुमप्रतिम ईश्वर ही साधन के आयोग्य है । अतः अनुमान के द्वारा ईश्वर का साधन करनेवाला पुरुष उसी प्रकार विफल होगा, जैसे कि किसी भी प्रकार से न खण्डित होने वाले आकाश की तरफ कृपाण को उछालनेवाला व्यक्ति विफल हो जाता है। अगर आपको बिना हेत्वाभासों के सुने सन्तोष न हो तो फिर उन्हें भी सुनिये। अशरीरिकर्तृ जन्यत्व में फलित उक्त अनुमान व्याप्तिग्राहक प्रमाणों से बाधित होने के कारण 'कालात्ययापदिष्ट' नाम के हेत्वाभास से दूषित है। एवं व्याप्ति के बल से ही अशरीरिकर्तृजन्त्वरूप विशेष की सिद्धि हो सकती है, किन्तु 'कर्ता शरीरयुक्त ही होता हैं' विशेष प्रकार की इस व्याप्ति से भी उक्त अनुमान दूषित होता है, जो वस्तुतः विरुद्ध नाम से प्रसिद्ध हेत्वाभास का ही प्रभेद है। इतना हो उक्त ईश्वरानुमान के विषय में आक्षेप करनेवाले पूर्वपक्षियों का आशय है। (उ० ) अब हमें इन सब आक्षेपों के समाधान में यह पूछना है कि शरीर का सम्बन्ध ही कर्तृत्व है ? या जिन कारणों में कार्य करने का सामर्थ्य ज्ञात For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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