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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरणम् ] www.kobatirth.org भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १३३ कर्मानुरूपं फलं प्रयच्छन् कथमनीश्वरः स्यादिति भावः । नहि योग्यतानुरूप्येण भृत्यानां फलविशेषप्रदः प्रभुरप्रभुर्भवति । कल्पाद (वुत्पन्नानां प्राणिनां सर्वशब्दार्थेष्वव्युत्पन्नानां सङ्केतस्याशक्यकरणत्वाच्छाब्दव्यवहारानुपपत्तिरिति चोदनायां प्रत्यवस्थान बीजमिदम्मानसानिति । योनिजशरीरो हि महता गर्भवासादिदुःखप्रबन्धेन विलुप्त - संस्कारो जन्मान्तरानुभूतस्य सर्वस्य न स्मरति । ऋषयः प्रजापतयो मनवस्तु मानस० अयोनिजशरीर विशिष्टादृष्टसम्बन्धिनो दृष्टसंस्काराः कल्पान्तरानुभूतं सर्वमेव शब्दार्थव्यवहारं सुप्तप्रतिबुद्धवत् प्रतिसन्दधते, प्रतिसन्दधानाश्च परस्परं बहवो व्यवहरन्ति । तेषां व्यवहारात् तत्काल वत्तिनां प्राणिनां व्युत्पत्तिः, तद्व्यवहाराच्चान्येषामित्युपपद्यते व्यवहारपरम्परया शब्दार्थव्युत्पत्तिरित्यर्थः । अभिप्राय यह है कि योनिज किं पुनरीश्वरसद्भावे प्रमाणम् ? आगमस्तावदनुमानञ्च । महाभूतचतुष्टयमुपलब्धिमत्पूर्वकं काय्र्यत्वाद् यत्कार्यं तदुपलब्धिमत्पूर्वकं यथा घट: कार्य्यश्व महाभूतचतुष्टयं तस्मादेतदप्युपलब्धिमत्पूर्वकम् । प्रमाणेन सभी जीवों को अपने कर्म के अनुसार फल देते हुए भी वह 'अनीश्वर' क्यों होंगे ? क्योंकि योग्यता के अनुसार अपने भृत्यों को फल देते हुए भी स्वामी अप्रभु नहीं होते । सृष्टि के आदि में उत्पन्न जीव शब्द और अर्थ के व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं, अतः सृष्टि के आदि में सङ्केत के द्वारा शब्द से होनेवाले व्यवहारों की उपपत्ति नहीं होगी। इसी का समाधान मानसान्' इस पद में है । शरीर के जीवों के संस्कार गर्भवासादिजनित बहुत बड़े विलुप्त हो जाते हैं, अतः उन जीवों को दूसरे जन्म सभी बातों का स्मरण नहीं रहता है। ऋषि, प्रजापति और मनु चूँकि मानस हैं (योनिज नहीं), अतः योनिज शरीरवालों से उनका अदृष्ट विलक्षण है । अत एव उनके सभी संस्कार उदबुद्ध रहते हैं । वे सोकर उठे हुए व्यक्तियों की तरह दूसरे जन्मों में किये गये शब्द ओर अर्थों के व्यवहारों को स्मरण कर इस जन्म में भी शब्द और अर्थ का व्यवहार करते हैं । उनके व्यवहार से ही और सभी जीव शब्द और अर्थ सङ्केत को ग्रहण करते हैं । उन जीवों के व्यवहार से फिर अन्य जीव भी शब्दार्थ व्यवहार को ग्रहण करते हैं । व्यवहार की इस परम्परा से शब्द और अर्थ के सङ्केत का ग्रहण होता है । दुःखों के भोगने के कारण में अनुभूत For Private And Personal ( प्र० ) ईश्वर की सत्ता में प्रमाण ही क्या है ? ( उ० ) शब्द और अनुमान दोनों हो। ( अनुमान इस प्रकार है कि ) पृथिवी प्रभृति चारों महाभूत किसी ज्ञानी कर्ता के द्वारा उत्पन्न होते हैं, क्योंकि वे कार्य हैं। कार्य अवश्य ही किसी ज्ञानी कर्ता के
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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