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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६६ प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् शरीरमयोनिजमेवादित्यलोके । पार्थिवावयवोपष्टम्भाच्चोपभोगसमर्थम् । इन्द्रियं सर्वप्राणिनां रूपव्यञ्जकमन्यावयवानभिभूतैस्तेजोऽवयवैरारब्धं चक्षुः । शरीर भी अयोनिज ही है एवं आदित्यलोक में प्रसिद्ध है । पार्थिव अवयवों के सम्बन्ध से यह सुख दुःख के अनुभव की क्षमता प्राप्त करता है। सभी प्राणियों को रूप का प्रत्यक्ष जिससे होता है, वही तैजस इन्द्रिय है । जिनकी शक्ति विजातीय द्रव्यों की शक्ति से पराभूत नहीं हुई है, उन तैजस अवयवों से तैजस इन्द्रिय की सृष्टि होती है। इस इन्द्रिय का नाम है 'चक्षु'। ___न्यायकन्दली विषय इति त्रयं तेजसश्च कार्यम् । शरीरमयोनिजमेवादित्यलोके । ननु दहनात्मत्वात् तेजसा तदारब्धं शरीरं वह्निपुञ्जप्रायं विशिष्टव्यवहारायोग्यत्वान्नोपभोगाय कल्प्यते, तत्राह-पार्थिवावयवोपष्टम्भाच्च इति । पार्थिवानामवयवानां निमित्तभूतानामुपष्टम्भात् संयोगविशेषात् तेजोऽवयवा उपभोगक्षम विशिष्टमेव शरीरमारभन्ते, न वह्निपुञ्जप्रायमित्यभिप्रायः । ___ इन्द्रियं रूपव्यञ्जकमिति । सर्वप्राणिनां रूपव्यञ्जकं यदिन्द्रियं तत् तेजोऽवयवैरारब्धम् । इदमेव कुतो रूपव्यञ्जकमिन्द्रियं स्याद्, नान्यत् तेजोद्रव्यमित्यत्रोपपत्तिः-अन्यावयवानभिभूतैरिति । ये पार्थिवोदकावयवैरप्रतिबद्धभेद से तेज के भी दो भेद हैं । “कार्यञ्च शरीरादित्रयम्" अर्थात शरीर, इन्द्रिय और विषय भेद से कार्यरूप तेज के तीन भेद हैं । तैजस शरीर अयोनिज ही है, जो कि आदित्यलोक में प्रसिद्ध है। तेज है अग्नि स्वरूप, उससे उत्पन्न द्रव्य अग्नि की तरह ही होगा, अत. शरीर से होनेवाले विशेष प्रकार के व्यवहार के अनुपयुक्त होगा। फलतः यह शरीर सुखदुःखानुभवरूप अपना प्रधान कार्य ही नहीं कर सकता? इसी प्रश्न का समाधान 'पार्थिवावयवोपष्टम्भाच्च" इस वाक्य से किया गया है। अभिप्राय यह है कि पार्थिव अवयवों के 'उपष्टम्भ' अर्थात् विशेष प्रकार के संयोग की सहायता से तेज के अवयव (उपभोगक्षम) एक विशेष प्रकार के शरीर को उत्पन्न करते हैं, वह्निसमूह की तरह नहीं । "इन्द्रियं रूपव्यञ्जकम्" सभी प्राणियों के रूप-प्रत्यक्ष की कारणीभूत इन्द्रिय तेज के अवयवों से ही उत्पन्न होती है। यही इन्द्रि यरूप तैजस द्रव्य रूप के प्रत्यक्ष का कारण क्यों है ? अन्य तेजस द्रव्य क्यों नहीं है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'अन्यानभिभूतैः' इत्यादि से देते हैं। तेज के जिन अवयवों का सामर्थ्य पार्थिव और जलीय अवयवों For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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