SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् ९१ प्रशस्तपादभाष्यम् त्रिविधं चास्याः कार्यम् । शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञकम् । इसके कार्य (१) शरीर (२) इन्द्रिय और (३) विषय भेद से तीन प्रकार के न्यायकन्दली सा चानित्या कारणविभागस्याश्रयविनाशस्य च हेतोः सम्भवात् । कार्यलक्षणायाः पृथिव्या अनित्यत्वेन सह धर्मान्तरं समुच्चिन्वन्नाह-सा चेति । स्थैर्य निबिडत्वम् । आदिशब्दात् प्रशिथिलत्वादिपरिग्रहः । अवयवानां सन्निवेशोऽवयवसंयोगविभागविशेषः । स्थैर्यादयश्चावयवसन्निवेशाच तैविशिष्टा अपरजातिबहुत्वोपेता गोत्वादिजातिभूयस्त्वयुक्तेत्यर्थः । परमाण्वादिष्वपरजात्यभावेऽप्यदृष्टवशात्तथा तथा तेषां व्यूहो यथा यथा तदारब्धेष्वपरजातयो व्यज्यन्ते। नन्वदृष्टकारिता सर्वभावानां सृष्टिः, कार्यलक्षणा पृथिवी कामर्थक्रियां पुरुषस्य जनयति, येनेयमदृष्टेन क्रियत इत्यत आह-शयनासनेति । शयनासनादयोऽनेक उपकारास्तत्कारिणी कार्यलक्षणेति । तारतम्य भी बढ़ता जाएगा, किन्तु इसे द्वयणुक में साक्षात् घट की उत्पादकता सिद्ध नहीं होती है, क्योंकि घट के नष्ट होने पर अन्य छोटे बड़े अवयव दीख पड़ते हैं। उसीके अनुसार द्वयणुक से उत्पन्न होनेवाले कार्य की कल्पना करते हैं। तस्मात् परमाणुओं से द्वयणुकादि क्रम से कार्य रूप पृथिवी की. उत्पत्ति होती है। यह कार्य रूप पृथिवी अनित्य है, क्योंकि आश्रयविनाश एवं अवयवों के विभाग, कार्यविनाश के ये दोनों ही हेतु सम्भावित हैं । कार्य रूप पृथिवी में अनित्यत्व के साथ और धर्मों का समावेश कहते हुए 'सा च' इत्यादि वाक्य लिखते हैं । 'स्थैर्य' शब्द का अर्थ है निबिडत्व, कठोरता । 'आदि' पद से प्रशिथिल त्व, कोमलत्व प्रभृति का संग्रह अभीष्ट है। 'अवयवसं निवेश' शब्द का अर्थ है अवयवों का विशेष प्रकार का संयोग । ('स्थैर्याद्यवयवसंनिवेशविशिष्टा' ) इस वाक्य का विग्रह इस प्रकार है कि स्थैर्यादयश्च अवयवसंनिवेशाश्च स्थैर्याद्यवयवसंनिवेशाः' तैः विशिष्टा स्थाद्यवयव. संनिवेश विशिष्टा । 'अपरजातिबहत्वोपेता' अर्थात् गोत्वादि अनेक प्रकार की अपर जातियाँ उसमें रहती हैं। यद्यपि कार्य रूप पृथिवी के मूल कारण परमाणुओं में ये अपर जातियां नहीं हैं, किन्तु अदृष्टवश उनसे इस प्रकार से कार्यों की उत्पत्ति होती है कि उनमें ये गोत्वादि अपरजातियां अभिव्यक्त होती हैं। अगर सभी वस्तुओं की उत्पत्ति अदृष्ट से ही होती है तो फिर यह कार्यरूपा पृथिवी जीवों के किन प्रयोजनों का सम्पादन करती है कि उन्हें अदृष्ट से उत्पन्न मानें ? इसी प्रश्न का समाधान 'शयनासन' इत्यादि से देते हैं। अर्थात् शयन और आसन प्रभृति जीवों के अनेक उपकरण कार्यरूपा पृथिवी के द्वारा सम्पादित होते हैं। ११ For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy