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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकरणम् ] Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् गुणादीनां पञ्चानामपि निर्गुणत्वनिष्क्रियत्वे । द्रव्यादीनां त्रयाणामपि सत्तासम्बन्धः, सामान्य विशेषगुण से लेकर समवाय तक अर्थात् गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय इन पाँच पदार्थों के निर्गुणत्व और निष्क्रियत्व साधर्म्य हैं । द्रव्यादि तीन वस्तुओं के अर्थात् द्रव्य, गुण और कर्म्म इन तीन पदार्थों के ये पाँच साधर्म्य हैं- ( १ ) सत्ता का सम्बन्ध, ( २ ) सामन्यवत्त्व, ( ३ ) विशेषवत्त्व (अर्थात् पर और अपर दोनों जातियों का सम्बन्ध ), ( ४ ) इस शास्त्र के सङ्केत न्यायकन्दली ૪૨ द्रव्यादीनामित्युक्ते समवायोऽपि गृह्येत, तदर्थं पञ्चानामित्युक्तम् । पञ्चानामित्युक्ते च केषामिति न ज्ञायते तदर्थं द्रव्यादीनामिति । गुणादीनां समवायान्तानां साधर्म्यमाह - गुणादीनामिति । निर्गुणत्वं गुणाभावविशिष्टत्वम्, निष्क्रियत्वं क्रियाभावविशिष्टत्वम्, यथा भावोऽभावस्य विशेषणं स्वविशिष्टप्रत्ययजननादेवमभावोऽपि । तथा चोपनिबद्धमघटं भूतलमिति । भावाभावयोरसम्बन्धात् कथमभावो विशेषणमिति चेदस्ति तावदयं विशिष्ट - प्रत्ययः, तद्दर्शनात् सम्बन्धमपि कल्पयिष्यामः । यदि सम्बद्धमेव विशेषणं मन्यसे । रहना । 'अनेकत्व' शब्द का अर्थ है विभिन्नत्व वह परस्पर एक दूसरे में न रहनेवाला उन वस्तुओं का स्वरूप ही है । 'द्रव्यादीनाम् ' केवल इतना कह देने से समवाय का भी ग्रहण हो जाता, अतः 'पञ्चानाम्' यह पद है । केवल 'पञ्चानाम्' इतना ही कहने से 'कौन पाँच' यह समझ में नहीं आता, अतः द्रव्यादीनाम्' यह पद है । For Private And Personal 'गुणादीनाम्' इत्यादि सन्दर्भ से गुण से लेकर समवाय तक के पाँच पदार्थों का साधर्म्य कहते हैं । 'निर्गुणत्व' शब्द का अर्थ है गुणों का अभाव और 'निष्क्रियत्व' शब्द का अर्थ है क्रियाओं का अभाव । जिस प्रकार भाव' अपने से युक्त अभाव प्रतीति का जनक होने से अभाव का विशेषण होता है, उसी प्रकार एवं उसी हेतु से अभाव भी भाव का विशेषण हो सकता है । एवं उसी के अनुकूल 'अघटं भूतलम्' इत्यादि विशिष्टप्रतीति के जनक प्रयोग भी होते हैं । (प्र०) भाव और अभाव दोनों ही परस्पर विरोधी हैं, अतः उन दोनों में परस्पर सम्बन्ध असम्भव है, एवं दोनों में परस्पर सम्बन्ध न रहने से विशेष्य विशेषणभाव सुतराम् असम्भव है । (उ० ) उक्त कथन ठीक नहीं है, क्योंकि भाव विशिष्ट अभाव की, एवं अभाव विशिष्ट भाव की दोनों ही प्रतीतियाँ अवश्य हैं। अगर परस्पर सम्बद्ध दो वस्तुओं में से ही एक को विशेष्य और दूसरे को विशेषण मानना हो तो फिर उक्त विशिष्ट प्रतीतियों के बल से भाव और अभाव इन दोनों में भी किसी अनुकूल सम्बन्ध की कल्पना करनी ही पड़ेगी ।
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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