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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम् प्रशस्तपादभाष्यम् अयुतसिद्धानामाधा-धारभूतानां यः सम्बध इहप्रत्ययहेतुः स समवायः। आधार और आधेयरूप अयुतसिद्धों के 'इहप्रत्यय' अर्थात् इस आधार में यह आधेय है, इस बुद्धि का कारण जो सम्बन्ध वही समावाय है । न्यायकन्दली समवायस्वरूपं निरूपयति—अयुतसिद्धानामिति । युतसिद्धिः पृथसिद्धिः, पृथगवस्थितिरुभयोरपि सम्बन्धिनो: परस्परपरिहारेण पृथगाश्रयाश्रयित्वम्, सा ययोर्नास्ति तावयुतसिद्धौ, तयोः सम्बन्ध: समवायः । यथा तन्तुपटयोः । __ यद्यपि तन्तवः पटव्यतिरिक्ताश्रये समवयन्ति, तथाप्युभयोः परस्परपरिहारेण पृथगाश्रयाश्रयित्वं नास्ति, पटस्य तन्तुष्वेवाश्रयित्वात् । यत्र तु द्वयोरपि सम्बन्धिनो: परस्परपरिहारेण व्यतिरिक्ताश्रयाश्रयित्वम्, तत्र युतसिद्धिः, यथा त्वगिन्द्रियशरीरयोः । शरीरं हि त्वगिन्द्रियपरिहारेण पृथगाश्रये स्वावयवे समाश्रितम्, तेनानयोः संयोगो न समवायः । नित्यानान्तु युतसिद्धिः पृथग 'अयुतसिद्धानाम्' इत्यादि पङ्क्तियों से 'समवाय' के स्वरूप का निरूपण करते हैं। 'युतसिद्धि' शब्द से पृथसिद्धि अर्थात् अलग अलग स्वतन्त्ररूप से रहना अभिप्रेत है । कहने का तात्पर्य है कि जिन दो सम्बन्धियों का आश्रयत्व या आश्रितत्व एक दूसरे को छोड़कर किसी तीसरी वस्तु में भी रहे उन दो वस्तुओं की स्वतन्त्र रूप से विद्यमानता ही "युतसिद्धि" है। इस प्रकार की युतसिद्धि जिन दो वस्तुओं की न रहे वे दोनों वस्तु 'अयुतसिद्ध' हैं । इसी प्रकार की (अयुतसिद्धि) दो वस्तुओं का सम्बन्ध समवाय है । जैसे सूत और कपड़े का । ___ यद्यपि तन्तु पट से भिन्न अपने अंशु नाम के अवययों के साथ भी सम्बद्ध है । फिर भी परस्पर एक दूसरे को छोड़कर वे न कहीं आश्रित हैं एवं न कोई उनमें आश्रित हैं।' जिन दो वस्तुओं में परस्पर एक दूसरे से असम्बद्ध होकर स्वतन्त्र रीति से किसी तीसरी वस्तु का आश्रयत्व या आश्रितत्व है, उन दो वस्तुओं की स्वतन्त्र रूप से विद्यमानता ही 'युतसिद्धि' है, जैसे कि त्वगिन्द्रिय और शरीर की विद्यमानता । शरीर त्वगिन्द्रिय को छोड़कर स्वतन्त्र रूप से अपने अवयवों में रहता है, अतः त्वगिन्द्रिय और शरीर का सम्बन्ध संयोग ही है, समवाय नहीं । नित्य दो पदार्थों की 'युतसिद्धि' १. अभिप्राय यह है कि यद्यपि तन्तु पट से भिन्न अपने अंशु नाम के अवयवों में भी सम्बद्ध है, अतः तन्तु और पट में युतसिद्धि को शङ्का ठीक है। किन्तु पट चूँकि तन्तुओं में ही आश्रित है । अतः पट का आश्रयरूप तन्तु अंशु प्रति अन्य पदार्थों में सम्बद्ध भी हों तथापि पट को छोड़कर कहीं सम्बद्ध नहीं हो सकते । अतः पट समवाय से युत तन्तुओं की स्वतन्त्र सिद्धि सम्भव नहीं है । For Private And Personal
SR No.020573
Book TitlePrashastapad Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhatt
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages869
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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