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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir प-म. महनमस्रीत्यर्थे विनियोग ॐ नमोहनमते आंजनेयायहदमूर्तयेशिरः वसुसुतायशिखा अग्निगर्भायकवचं २३६|| राम दूताय नेत्रंब्रह्मास्त्रनिवारणाय अखंएतैरेवकरन्यासंचस्फटिकाभस्वर्णकांतिहिशुजंचततांजलिंकंडलय संशोभिमुखां भोजंमुहर्भजे हींनमोभगवन् प्रकटपराक्रमआक्रांतदिउलयशोवितानयथवली कतजयवन देहरुद्रावतारलंका पुरीदहन उदधिबंधनदेशग्रीवसतांत कसीताधासन अंजनागर्भसंभवरामलक्ष्मणानंदकर कपिमैन्य प्रकारकसुग्रीवधारणपर्वतोत्पाटनवालब्रह्मचारिन् गंभीरशब्दसर्वग्रहविनाशनसर्वज्वरोत्सादनजाकि नीविध्वंसनहींहाहाहं हंसहंसरहिसर्व विषहरहरपरवतंसोभपक्षोभयममसर्वकार्याणिसापयसापपहुं फट्ट म्बाहादति हनमन्मालामन्त्रःरतानलमणादिमंत्रान राममंत्रांगत्वेनय था शक्तिजपेत् अथश्रीराममन्त्रपसंगानश्री रामसंध्यावंदनमपिकल्पांतोकमत्र योग्यतावशालिख्यते अस्पश्रीरामसंध्यावंदनस्य अगस्यभगवानऋषिःगायत्री छंदः श्रीरघुनाथो देवता अस्त्रमन्त्रेणजलंसंध्यचकीकत्यकवचमन्त्रेणावगुंठपपश्चात् ब्रह्मांडोदरतीर्थानिकरैःस्था टनितेश्वेतेनसत्येनंभेवतीर्थदेहिदिवाकर तिमन्त्रेण आदित्याज्जलंपार्यअंकशमद्रयामंजलविभिद्य करेतज्जलाराम मादाय गंगेचयमुनेचेनिमन्त्रेणतजेलेजलेप्रतिष्ठाप्य आवाहनादि षण्मुद्रांप्रदर्शयेत् आवाहितोभवसंस्थापितो||२२१ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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