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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मगन्यासं-चकुर्णत् ध्यानं यासा पद्मासनस्था विपुल कटितटीप अपनायताक्षी गंभीरावर्तनाभिस्तनभर नमिता शुक्ल वस्नोत्तरीया लक्ष्मी दिव्यै गैजें ट्रैम गिगणखचितैःस्ना पिताहेमकुंभै संसा पत्रहस्ता वसतु || ममगृहेसर्वमांगल्य युक्ता मे ॐ श्री की महालक्ष्मिमहालक्ष्मिएहोहिसर्वसौभाग्य मेदेहि स्वाहा चतुर्वि शत्सोयमंत्रः लक्षंजपेत् दशाशतर्पणं दशांशहोमः शेषमेकाक्षरी विधानवत् अयउक्ता नां महालक्ष्मी मंत्राणा प्रयोग विधिः अशोकवन्ही जुहुयातम्ले राज्यलोलितैःबश येद चिरादेवलोक्य मपिमें वित् जुहुयात्तंडुलैः भुट्टैरकी नोनियुतं वशीराज्य नियमवाप्नोति राजपुत्रोमहीयसी जुहुयाखादिरेवन्हीत इलैमधुनीक्षितैः राजवश्वाभवेति महालक्ष्मीनवर्धने बिल्वडा या मपि वसन् बिल्व मित्रहविष्यभुक संवत्सरहयं हत्वा तत्फलैरथवावुजैः साधकेंद्रोमहालक्ष्मी चक्षुषा पश्यतिवं हविषा धुत सिक्न पयसा सर्विषा पिवा हुत्वात्रियमबानोति नियतो मंत्र वित्तमः मधुनाक्तारुणा भोजैर्जुहुयाल्लक्षमादरात् नहुँच || तिरमातस्य पुरमाभृतसंलुतं वक्षप्रमाणेसलिले छितामंत्रम मुंजपेत् एकाक्षरत्रिलसंतुदेवी ध्यात्वा के मंडले समवेदल्पकालेनरमायावसतिलिरा विष्णु गेहस्थ विल्यस्यमूलमध्यास्पमंत्रवित बिलसंजप For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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