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________________ Shri Malar Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri.Gyanmandir प्र.से. तो मंत्रं वांछितं लभते धनं यंत्रांत्रिकोणं पूर्व मालिख्य अष्टको गं लिखेत्ततः त्रयोदशदलं पद्मं शोभनं के १४६ सरान्वितं तर्हिर्भूपुर इं द्वं बज्न को समन्वितं चतुर्विंशतिवर्णाना - मे कै कं विलिखे हुधः त्रिके | णेवष्ट कोणेषु त्रयोदशदले वपि न पुरे विलिखे मंत्री प्रियो बीजं समय के भू कोणेच पि तद्वी जे लिखे हिक्षुविदिक्षुच एवं विलिख्य विधिवत् प्राणान् संस्ठाप्य मंत्रवित् पूजयित्वा जपेन्मं त्रं साधयेत्सर्व सिदि अथ लक्ष्मी स्तोत्रम पिकल्यां तरोक्त मंत्र लिख्यते अंगहरेः पुल के भूषण माश्रयंती भृंगांगनेव मुकुला भरणं तमालं अंगीकृताखिलबिभूतिर पांगलीला मांगल्य दास्तु मम मंगल देवतायाः ९ मुग्धा मुहुर्वि दधती वदने मुरारेः प्रेमनपा प्रणिहिता निगता गतानि मालाह शोर्मधुकरीत महोत्पलेया सा मे श्र यं दिशतु सागर संभवायाः २ आनी लितार्थम विगम्य मुदा मुकुंद मानंद कैद मनिमेषमनं गतं आकेकर स्थित कनीनिक पक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्म मभुजंगशयांगनायाः ३ वा इतरे मधुजितम्मित को स्तुमेया हारा व ली वह रिनीलमयीविभाति कामप्रदा भगवतो पिकटाक्ष माला कल्याण मावहतु मेकमा राम लालयायाः ४ काला बुहा लिलति हो र सि कैटभारे धराधरे स्फुरतियात डिदंगने व मातुः समस्तजगतां सर्द For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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