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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रतिशवीजा हिबद्धपुरेग्नेल कोणोला सिमायं हरियंसर विल सइंड मे हि:समायैःवश्वावेशितंतत्रिी ||गुणित मिति विख्यात मैसस यंत्रस्या दायुष्यंच वश्य चनकरममित श्री प्रदं की र्ति दंच अस्थार्थःप्रथ म त्रिकोण विलिरव्य लमध्येभुवनेशी विलिरव्य तन्मध्ये साध्य नामादीन् विलिखेत् पुननिपु कोणाग्रस्था निवहिर्भुवनेशी बिलिरव्य तद्भुबने शीत्रयमपिखस्थावस्पारे फांशानेणखख मात्मानंप्रदक्षिणीकृत्यों नंतराम तरंभुबनेशी बहिः कृत्यहती या याभुवनेश्माईकारांशेनयोजयेत् पुनरित्रकोणकोणोद्वेष विधपि वली रबर की कारं सकिंदु के विलिरव्य पुनःकोण अयाणा मपि पार्थ याई रिहर इसक्षर चतुष्टये एकै कलिान या दो ही विलि खत् पुनः बर्हि सत्रयं विलिरत्य प्रयमेवृत्ते हरिहरइत्यतर चतुश्यपू पर्व कप तुर्थ स्वराज्य मीकारं सविंद के पूर्व लिखितभुवनेशी नितयां तराळ प्रदेशस्य ऋजदेशहरेईहर ईइत्येप्रकारेण विलिखेत् बुनाईली येसेअनुलोममातृकावणेश्यन् तृ प्रति लोसमात काबणैश्वदेशयेत् तत्रआयु व्यंच वश्यंधनं करममित श्री प्रदे कीर्तिदंञ्चति आयुष्ये नमध्यस्य बीमत्कंजयेनावेशयेत् वयशान वोजेनधनानियोः श्रीवीजेन करतौ अजपयावेष्टये 3CPETERace For Private And Personal J
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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