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________________ Shri Mahavia Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyarmandir प्रमच इत्यादिप्रभागोतक्रमेण गंधद्दारामित्यादि मंरक केरेकै के संयोजयेत् अथवागंध हारामित्यादिर चासर्वसंयो १९२४||जयेदिति खयंवरा कल्पःसमाप्तः अथखयं वरामंत्रप्रसंगान कल्मोनरोक्त रतन्यासोप्पनयोग्यतावशा लियते || प्रथमगुरुगणपति वंदनादीन्कृत्वा हर्सेसहरैएताभ्यां च मूलमंत्रणचहृदयादारभ्य मूर्धपर्येतंन्यसेत् एवं श्रोदयेक हा पुनःनववारभुवनेश्वयी वृत्यारेचके कृत्वातहि गुणा वृत्या पूरकं कृलादात्रिंशद्वारंभुवनेश्वरी पूर्व के णमूलमेनिवारणकुंभक प्राणायामच कृत्वा पुनःहस्त तले दक्षिणनासिका श्वासमार्गेणतेजस्वीकारपूर्वक हैव्याप्य पुनःपीठन्यासउपरिसप्तदशपटले वक्ष्यमाणप्रकारेण यातू तत्रजनशति:प्राग वस्वयंवरा विधानोक्तप्रकारेणकुर्यात् पुनःहृदयेसमावाह्य प्राणप्रतिष्ठाचकृत्वा पुनर्मूल मंत्रेणत्रिवारकुंभ वंकृत्वा तेजस्वीकार पूर्वकै अंगैःकरन्या संकृत्वा पुनःपंचबाणेश्वकरंन्यासंकुर्यातू दांद्राविणबागायनमः दी। क्षोभण बागायनमः क्लीं वशीकरणबाणायनमःलू आकर्षणबागायनमः सःसं मोहन बाणायनमः इति । चबाणायनमः मूलेनव्याप्य होहल्लेखायैनमः हींगेगनायैनमः रक्तायैनमः हैं करालि कायनमः होमहोशः छुभायनमः एतानिपंचतत्वा नि शिरोवदन हृदय गुह्य पादेषुन्यसेत् पुनः शुद्ध मातृकान्यासः पुनर्भुवनेश्वर For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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