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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir संतचंद्रिका मनोज्ञमुरवीं। मत्तेंद्र कुंनिकुंभप्रोन्नतकुचकुंभखिन्नमध्यलतो।मन्मयपृथुजचना मुनि मुख्याराध्यमान १२१|| पदकमला। मणिमयमंजीराहद कोचीवेय कटकमकुटाद्योगकाश्मीर कर्दमनिभाकरधृतरलामिपूर्णक नवटा संचिंत्यैवं देवीं वसुसंख्य मंत्रमेनमथजवा॥अमृता बस्त्राविविग्यां विलोकयंती निजाननेदृष्यास्मि। वाहिमगिरि तनया षोडश सेख्य प्रजप्यभ्यश्च ॥आरभ्य पादपोगत्तस्याःसंकल्प्यरजतसोपानंस्वांगावधिमनु मेना द्वात्रिंशत्संख्यक प्रजप्यतःस्मृत्वापरिवार युत्तामार्गेणानेनमंदमवतीर्थ तिछतीनिजपरतोध्यात्वाचा|| टोत्तरंशतंजत्वा रत्नघटानननिर्यत्सुबहल रत्नांबुधारयागोरीं।अभिषिच्य पूरयंतीनिजतनुमनुचित्य योमन जष्यातू अरोत्तरशतलं मनुवरमेन महत्तरानुचिरात् ॥संप्राप्नुयान्मनोज्ञाधनधान्य समृद्रिसुकुलालक्ष्मीः । पुरःसाध्यंमंत्री शिवतनुममुं मारविवशं निजामूर्ति नतिरिवरसुता मुचलतनुं शिवो माराोंगावनिमिलि तदेही स्मरयति यमुहिश्या सोनामवतिनचिरादेववशगः साध्य शिवातनममनवनीतरूपनीलंनिजे शिव तनावनलस्वरूपे संचिंत्यसाध्यममुनाशयनासनाद्यनित्संकरोति म तिमाननरंजनाय स्व स्मेकलंनरममल|| रामः थीःशंभुरूपंभवानी विश्ले पतिंनिजतनु मुमति ददत्यंतहृद्या क्रोधवतंप्रणयमथुरैः कोपयंतीमांगेयीये २१ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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