SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्र.सं. रपितत्रैवोक्तप्रकारेणकरन्यासं कृत्वा पुनःश्री विद्याषडंगैरपिप्रागुक्तैः करन्यासंकृत्वावैष्णवषडध्वन्या ११३ संकुर्यात् तत्प्रकारोलिख्यतेस पुनःषडियः कलातत्त्वभुवनवर्ण पदमंत्र भेदेन तत्र प्रथम कला न्या सोलिख्यते हौनमः परायशात्य तीतकलात्मने नमः हैं नमः पराय शांति कलात्मनेनमःहूनमःपरायवि द्या कलात्मने हीनमः परायप्रति टाकलायन हूंनमःपराय निवृत्तिकलात्मनेनमःमूहस्सहृदय गुत्थपादेषु न्यसेत् पुनललेन्यासः तत्पकारस्तु उपरिशासप्तदशपटले वक्ष्यते पुनर्भुवनन्यासः ॐ भूौकायनमः। ओभुवलौकाय ऑसुवलौकाय ओमहाकायःओंजनलोकाय ओतपोलोकाय औसत्यलोकाय एतै भ्युदरहृत्कंगननभ्नूमध्य मूईसन्यसेतू अंजतलायनमःअंवितलाय.अंसतलाय.अंनि तलाय. अंमहातलाय. अरसातलाय अंपात्तालतलायनम एतैःकटयूर जानुजंघागुल्मपदतद ग्रेषुन्यस्य पुनर्वर्णन्यास कुर्यात् सतुलिपिन्यासःकाननवृत्तेत्याधुक्त प्रकारः पुनःपदंन्यासंकुर्यात् ॐ हीजाप्रसदात्मनेनमःहंसःखप्नपदात्मने नमः सोहंसषुप्तिपदात्मने नमः स्वाहा तुरीयपदात्मनेनमेः रामः कटयादिपादोतं कं ठादिक तंशिरआदिकंठतंशीर्षा दिपादोतंचव्याप्य पुनमैत्रंन्यासः सतुपुरुषम् ||११३ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy