________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
i4
(१९९) ११०५. एवं परं समं धुवं मा मनाक एम्ब पर समाणु धुवु
में मणा। ४. ४१८ । अपभ्रंशे एवमादीनां एम्वादय आदेशा भवन्ति । एवम एम्बपिय-संगमि कउ निद्दडी पिअहो परोक्खहो केम्व । मई विन्निवि विन्नासिा निह म एम्ब न तेम्ब ॥ परमः परः-एणहि न संपय कित्ति पर. सममः समाणुकन्तु जु सीडहो उवमिभइतं महु खण्डित माणु । सीहु निरक्खय गय हणइ पिउ पय-रक्ख-समाणु ।। ध्रुवमो ध्रुवुः-- चनलु जीविउ ध्रुवु मरणु पिअ रूसिज्जइ काई। होसई दिअहा रूसणा दिवई वरिस-सयाई ।। मो मं- मं धणि करहि विसाउ. प्रायो ग्रहणात्माणि पणइ जइ न तणु तो देसडा चइज्ज । मा दुज्जण-कर-पल्लवेहिं देसिज्जन्तु भमिज्ज || लोणु विलिज्जइ पाणिएण अरि खळ-मेह म गज्जु । बालिउ गलइ मुझुम्पडा गोरी तिम्मइ अज्जु ॥ मनाको मणाविवि पणइ पङ्कुटर रिडिहिं जण-सामन्नु ।
किंपि मगाउं महु पिअहो ससि अणुहरइ न अन्नु । ११०६. किलायवा दिवा सह नहेः किराहवर दिवे सई
नाहिं। ४. ४१९ । अपभ्रंशे किलादीनां किरादय आ. देशा भवन्ति ।
For Private and Personal Use Only