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प्राकृतपेक्षणम् ।
पत्रह' असुहउ पंगु होण खोडउ पभणिज्जइ मत्तग्गल बाउलउ सुस्मकल' कम सुणिज्जइ । me' बजि तह बहिर' अंध अलंकार रहिउ - बुलउ' छंद" उट्टबण" अत्य" बिरणु" दुब्बल कहिउ ॥ डेरउ हट्ट "क्खरहिं" होइ काणा गुण सब्बहि रहिच" । सब्बंगसुद्द समरुच गुण छप्पा" दोस पिंगल कहि " ॥ ११६° ॥ [छप्पअ ]
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११५ । पञ्चचत्वारिंशद्वस्तु छन्दसा विजृम्भते । तत्त्वतः कविपिङ्गलः कथयति न चचति हरिहरब्रह्मा || वस्तुनामकच्छन्दः छन्दमा प्रकारभेदेन पञ्चचत्वारिंशद्विधं विजृम्भते, न चलति - अन्यथा न भवति, हरिहरादिनाऽन्यथा कर्त्तुं न शक्यते इत्यर्थः, अथच ग्रन्थकर्त्ता हरिहरवन्दौ न चलति न भ्रान्तो भवतीत्यर्थः ॥ (C).
११५ । अथ शक्रमादाय संख्यान्तर दोहावृतेनाह पंचतालीसह
११६ । १ पश्चचं (D). २ वार्डल (B), वार्डस (D), बाउल (E & F). २- सुषफल (D & F'). ४ कहिब्जर (A), बुबिब्बर ( B & C ), सुपिज्जसु (F). ५ फल (A). ( वचि (B). .० गुणरचि (A), गुणवहिर (B & C ). ८ लंकारविरहित (A), लंकारचं रयिचल (D), लंकारहि रहिच (E).. १० बंदु (A). ११ उद्विषबषु (F).
१४ अवहड (A), चहड़ (B & C ). राच रंक सम्बहि गहिच (A), कापड १० रूष (A & F'), चहरिसगुण १९ पिङले कहि (B & C ),
९ बोलड (A, B & C), बूल (E & F).
१३ विश्व ( B & C ).
११ अच्छ (A). १५ रहि (E & F). अगुण राय अक्ष सबहिं गहि
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कायउ मह (B & C ). .१८ कम्पर (E). २०१३ (A), १९ (F').
(B), रसरूपगुण (C). पिंगस्तु कहिच (D).
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