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७४ ॥ कोइ आवस्यकनु। रानणी न थाय ॥१॥ | पणवीसा मन्नयरं। साहुगणं विराहंतु ॥ २०॥ महपती पमीलेहण पचीसनु बद पमीलेहण मुहपती नंची करी द्वार ११ नजरे मुहपती जो परखोमा त्रण त्रणने आंतरे ॥ वी ते एक।
दिष्पमिलेह एगा। उन पलोम तिग तिगंतरिया॥ अखोमा प्रमार्जवु प्रथम ज एम नव नव ए समग्र मली मुहपती मणे हाथे झाली मावे हाथे। नी पमीलेषणा पचीस ॥२०॥ ___ अकोम पमऊगया। नव नव महपत्ती पणवीसा॥२०॥ प्रदक्षिणाई करी त्रण त्रण मानी जमणी३ जुजाई मस्तके त्र कीहां ते कहे। प३ मुखे त्रण३ हायाने वीषे३ ॥
पाया हणण तिप्रति वामे अर वाह सीस मुह हियए। बेखने गंची नीची अ। चार ब पमीलेहण बे पगे ए देहनी एक एक पिठे।
पचीस ॥१॥ ___ अंसु हाहो पिछे। चनबप्पय देह पणवीसा॥२१॥ श्रावस्यक पमीलेहणमां जी करे नद्यमे करी पुर्वे कह्याथी नहीं म जीम।
हीण नही अधीक ॥ । श्रावस्सएस जह जह। कुणापयत्तं अहीण मरित्तं॥ जीवीध मन वचन कायाइंन तीम तीम तेहने कर्मनी नीजरा पयोग सहीत।
सकांम थाय ॥२॥ तिविह करणो वनत्तो। तहसे निकरा हो ॥॥ बत्रीस दोषनु द्वार १३ बादर र वांदणां देतो नासेर समग्रने नेगा हीत वांदे ते? जत्यादी मदे। वांदे तीमनी परे ठेकमा देते॥ दोस प्रणाढिअरथद्विय पवि३ परपिंमियंच टोलग
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