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________________ प्रसन होय रुमेासने बेठा होय। क्रोधादीके रहीत बेठा होय ॥ पसंतेर आसण बेय। ग्वसते नवछिए३॥ गुरुनी आणा मागीने बुधीमान तीवारे वांदणां कर्म प्रजुंजे वा पंमीत। वांदे॥१६॥ __ अणुनवित्तु। मेहावी। किश्कम्मं पञ्जय ॥१६॥ वांदणा देवानां यात कारणनु कान्सग करते? पोतानो अपराध || द्वारए पमिकमणे? सजाय प्र खमावते? परुणा मुनी यावे वां उवण। दे॥ पमिकमणेर सशाए। काग्सग्गा३वराह पानणए||| देवसीराइ अतीचार आलो प्रयांत अगसण वा संथारो करते? यण लेतार पचखांण करते। ए वांदणानां आठ कारण ॥१७॥ बालोयण संवरणे। नत्तमव्या वंदण्यं ॥१७॥ पचीस आवस्यकनु द्वार १० आव्रत बार१२ चारधवार मस्तक बेवार नमवुश् मस्तके हाथ नमाझवु त्रण गुपती॥ जनमतां राषे तीम वस्त्रादी नपगरण यथायोग राखे। दोवणयरमहाजायं। आवत्ता बार१२चन सिर तिगु अवग्रहमां बेश्वार पेसवु ए ए पचीस आवस्यक वा अव [तं३॥ कर वार नीकलवं। स्य करवा वांदणा करता ॥१७॥ दुपवेसिग निकमणं॥पणवीसा वस्सय किश्कम्मे।१३ वांदणा कर्म पण करतो हुतो। न होय वांदणां कर्म कर्म नीजरावा नो नोगी॥ किश्कम्म पि कुणंतो। नहोइ किश्कम्म निऊरा नागी॥ पुर्वोक्त पचीसमांथी हरेक साधु आदे ठाम विराधे तो नीज ।
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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