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२ पार्श्वस्थर अवसनो। ___पासबोर नसन्नो। कुसील३संसत्तन अहाउँदोय॥ |ए पांचना प्रतेके नेद बेश् बेश् ए अवंदनीक श्री जिनेश्वरना मत त्रण बेश् अनेक प्रकारे। ने वीषये ॥१२॥
दुगद्गतिगदुरणेग अवंदणिका जिणमयंमि।१ पांच वांदवा योगनु द्वार विहा? गनि सारकारक? संजमे थीर क पांच श्राचारवंत नपध्याय।। रे ते? तीमज गुणरत्ने अधीक१॥ __ आयरियर नवज्ञाए। पवत्ति३थेरेधतहेव रायणिए॥ तेमने वांदणां देवां कर्म र करवां ए पांच नत्तम गुणवंत प्रते हीत थवा अर्थे।
॥१३॥ किश्कम्मं निऊरहा। कायव्व मिमेसि पंचएहं ॥१३॥ चार पासे वांदणा न देवरावे पर्याये मोटार तीमज समस्त द्वारणमातार पीता वमोनाइ। रत्नाधीक पासे॥
मायर पियजिघ्नाया।नमाविधतहेव सव्वरायणिए। वांदणा कर्म न देवराववां। चार वांदवा योगनु द्वार६ चार मुनी
आदे आदीपदी साधु साधवी श्राव
क श्रावीका ए चार वांदे वली॥१॥ किश्कम्मं नकारिजा। चन्समणाश् कुएंति पुणो॥१४॥ वांदणां देतां पांच नीसेधनु दार उध नीद्रादीकहुते नही कोइवार मकथादीके व्यघ्रहुते परानमुखहुते। वांदीस कहे हुते॥
वकित्त। पराहुत्ते। पमत्ते३ माकया वंदिला। आहार करतेहुते नीहार क एटलु करता गुरु प्रते नहीं वांदणा रतेहुते।
देवां कारे वांदवानु द्वार ॥१५॥|| आहारं४ नीहारं। कुणमाणे कान कामेय॥१५॥
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