SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - ५४ दस आसातना वा अवज्ञा त सघला चैत्यवंदनादीक [neml जवानु। स्थानके ॥ दस पासायण चान२४॥ सव्वे चिश्वंदणाइंगणाइं॥ ए चोवीस द्वारे करीने। बेहजारने होय चुनत्तरानुत्तर द्वारगाथा चवीस दुवारेहि। दुसहस्सा हुति चन सयरा ॥५॥ द्वार त्रण निसीही त्रण प्रदक्षणा। त्रण नीचे प्रणाम ॥ तिनि निसीहिरतिनिउपयाहिणाशतिनिचेवय पगमार वीवीध्य पूजार तीमज। अवस्था त्रण प्रकारे नाव: नोश्चे१।६। । तिविद्या पाय४ तहा। अवनतिअनावणंचेवा त्रण दिसि जोवानी वीरती वा पगनमी पमार्जन वलीत्रणवार॥ नीम। तिदिसि निरकण विरई। पयनूमि पमऊणंचतिकुत्तो वरण वा अक्षरादी बालंबन त्रीवोध वली प्रणिध्यांनर एमत्री त्रण मुद्रा त्रीकर वली। क दस॥॥ एहना उत्तर द्वार ३० वन्नाश तियंणमुद्दा तियंचा। तिविहंच पणिहाणं१० ॥७॥ प्रथम त्रीकर घरनोर देहराना व्यापार वा ते समंदी काम तज द्रव्य जिनपूजानोजे। बु ते नसीही त्रीक१॥ । घरजिणहर जिणपूआ। वावार चा निसीहि तिगं॥ कीहां ते थांनक देहराने मुल त्रीजी चैत्यवंदन जावपुजा करवाने द्वारे ग्रन घर ते गनारे। अवसरे॥॥ ___ अग्गदारे मने। तश्या चिश्वंदणा समए जा बीजंत्रीक बे हाथ मस्तके लगा खमासमण देता पांचे अंग नमे |वे ते अर्ध अंग नमावे ते। ते त्रण प्रणांम ॥ अंजलिबघो अहोणकय। पंचगन्य तिपणामा ॥ - ADAM ।
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy