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________________ - - - सघले अथवा त्रणवार। मस्तकादी नमामचे प्रणाम त्रीक बीजुश्॥॥ सव्वद वा तिवारं। सिराइ नमणे पणाम तिअं॥॥ हवे पुजा त्रीक३ अंगनी पागल जल चंदन फुल हारादी अक्षतादी मुकवानी नावनी एनेदे। स्तवनादी पुजा त्रीक ॥ अंग ग्ग नाव नेया। पुप्फाहार थुइहिं पूय तिगं॥ ते पंच प्रकारी अष्ट। प्रकारी सर्व प्रकारी अथवा पुजात्री क३ ॥१०॥ पंचो वयारा अघो। वयार सव्वो वयारा वा ॥१॥ अवस्था त्रीक नाववी अव पीयस्थ पदस्थ रूपरहीतथ॥ स्था त्रीक ते। नाविऊ अवन तिनं। पिंमब पयन रूव रहियत्तं॥ ते केइ बदमस्थ केवलीत्व सिद्धपणानी नीचे अवस्था त्रीकनो पणानी। अर्थ ते ॥११॥ नमब केवलीतं। सिद्धत्तं चेव तस्स बो ॥११॥ नवण करवाने थांनके केवलज्ञान न श्रष्ट प्रातीहार सहीत थांनके थाय तीहांसुधी बदमस्थ अवस्था। केवली अवस्था॥ __ न्हवणच्चगेहिं बनमब वह। पमिहारगेहिं केवलिअं॥ पद्मासने वा कानुसगे रहा जिननी नाववी सिद्ध अवस्था त्री थानके। कः ॥१२॥ | पलिअंकस्स गेहिय। जिणम्स नाविऊ सिद्धत्त॥१॥ दिसित्रीक ५ नर्थ वा तुंचु अत्रण दीसा नणी जोवु तजव बांझबु धो वा नीचुं त्रीतुं वा बांकुंए। अथवा॥ ॥ नहा हो तिरिमाणं। तिदिसाण निरकणं चइजह वा॥ - - - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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