________________
-
-
-
वैमानीक देवताने ज्योतीषी पल्योपम एक ने तेनो पाठमो ना देवताने
ग आयु होय अनुक्रमे ॥ द्वार १७ वेमाणिअ जोसित्रा। पन तय स ाका हुँति॥ ॥ द्वार देवता१३ मनुष। तिर्य इंपर्जाप्ती होय वली पांद्वार१७ च१ नारकी? ए सोलने वीषे। चरथावरमांच्यार पर्जाप्ती ॥३०॥
सूर नर तिरि निरएस। उपऊत्ती थावरे चनगं॥३॥ विगलेंद्रीश्ने पांच पजाप्ती द्वार ए बइं दीसानो याहार होय । द्वार १८
सर्व झमके पण ॥ | विगले पंच पऊत्ती। दिसि आहार होई सव्वेसिं॥ |पांच सुक्ष्म थावर द्वार१७ द्वारा अथ संज्ञा त्रण कहीस ॥३१॥ |पदे नजना जाणवी। द्वार ए
पणगाइपए नयणा। अह सन्नि तियं जणिस्सामि॥३॥ च्यारे नीकायना दे द्वारए नारकीर ने वीषे दीर्घकालकी वा वता१३ने वीषे तीर्यचरने वीषे। त्रीकालकी संज्ञा ॥
चनविह सुर तिरिएसु। निरएसुय दीहकालगी सणा॥ विगलेंद्रीश्ने हेतुपदेसकी संज्ञाई करी रहीत थावर५ सर्व वा वा वर्तमानकालनी । पांचे ले ॥३२॥ | विगले हेन्वएसा। सन्ना रहिआ थिरा सव्व॥३॥ मनुषने दीर्घकालनी वा त्रीकाल द्रष्टीवादोपदेसिकी सम्यक्त स नी संज्ञा ।
हीते कोइने पण ॥ द्वार २०. मणुाण दीहकालि। दिग्विानुवएसिया केवि॥ द्वार२१ पर्जाप्ता पंचेंद्री तिर्यय ने च्यार नेदे देवतामां [हार २० मनुष निश्चे।
जाय ॥३३॥ | पऊ पणतिरिमणुय च्चिय। चन विह देवेसु गछति॥३३॥
-
-
-
३