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१७६ आपणुं नांम ध्यातो थको। मासतुस मुनि केवलज्ञानी थयो ॥णा
नियनाम कायंतो। मासतुसो केवली जान॥ ए॥ हाथी नपर चमी श्रावती रूद्वी देखीने कोनी श्री रूपनदेव हवी ते।
स्वामीना अतिसयादिकनी॥ हबिंमि समारूढा। रिविं दखूण नसन सामिस्स॥ तेज वखते शुध ध्यान ध्या मरुदेवी स्वामीनी श्रीआदिनाथनी ती थकी।
माता सिद्धी पांमी ॥१०॥ तकण सुहकाणेणं। मरुदेवी सामिपी सिधा ॥२॥ प्रती जागरण वा वेयाव झंघानुं बल हीण थएनु एहवा श्रीथ च करती थकी। नीकापुत्र आचार्य नपरे नक्तिवंतने।
पमिजागरमांणीए। जंघा बल खीण मन्निापुत्तं ॥ संप्राप्त वा पांमी केवल नमो नमो श्री पुष्पचूला नांमे केव ज्ञान प्रते हेवी।
ली साधवी प्रते ॥११॥ संपत्त केवलाए। नमो नमो पुप्फचूलाए ॥२२॥ कोमीनदिन्न सेवालादी पन्नर गौतमस्वामीइं दिधी दिक्षा प्रते॥ से तापस अष्टापदे रहेलाने।
पनरसय तावसाणं। गोमनामेण दिन्न दिखाणं ॥ तेमने नपन्युं केवलज्ञान शुद्धनावे करी तेथी नमुटुं ते केवली शाथी ते केहेजे।
जगवंतोने ॥१२॥ नप्पन्न केवलाणं। सुह नावाणं नमो ताणं ॥१॥ जीव जे तेने सरीर जे देह नेद जे जुदापणु जांणीने समा ते थकी।
धीपणाने पांम्या हेवाने ॥ जीवस्स सरीराम नेअंना समाहि पत्ताणं। घाणीमां पीलतां प्राणंत कष्ट खंधकसूरिना शिष्य तेमने नमस्का
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