________________
उपन्युं वा थयुं सर्वोपरी ज्ञान केवलज्ञान इत्यर्थः ।
नप्पन्न दिव्वनाणा |
जगवंत वा पूज्य इलाची पुत्र मुनि ।
जयवं इलाइ पुत्तो ।
१७५
एहवी मृगावती साधवी जयवंती वर्तों शुद्धनवे करीने ॥५॥ मिगावई जयनं सुह जावा ॥ ५॥ मोहोटा वांस नृपर जे समस्त नीमोहे चमचो ॥
तिहां रहे देखीने मुनिराज कोइ | ग्रहस्थना घरमां गौचरिए गएला दहू मुणि वरिंदे |
।
कपिलनांमे ब्राह्मण ते मुनि ।
गुरुए वंसंमि जो समारूढो ॥ तेथी श्राव्य शुद्धभाव तेथी केवल ज्ञानी थयो ॥ ६ ॥
सुहनावा केवली जान ॥ ६ ॥ अशोकवनीका नांमे वामीमांही आपणा मनथी जे ॥ सोगवणिया मशयारंमि ॥ ध्यातो थको थयो जातीसम रणवंत अनुक्रमे केवली थयो
11911
जायंतो जाय जाइसरो ॥७॥ वासीनुदन वा करंबादीक जक्त वा आहार जे ते शुद्धनावथी ॥ वासिय नतेण सुध नावे ॥ पांम्यो श्री कूरगमूनामा मुनि ॥ ८ ॥ संपत्तो कूरगड्डु ॥ ८ ॥ ज्ञाननी श्राशातना वा अवज्ञा ना प्रजावे दुर्मेध वा मूर्ख ॥
| पालना नवमां आचार्यपद हूते पण कधी ।
पुव्वनव सूरि वि रई । नाणा सायण पभाव दुम्मेहो॥
।
कविलो बंनण मुणी जहा लाहो तहा लोहो लाहालोहो पवई दोमासा काय कजं कोमी एन नीवइ १ ए गाथानो अर्थ । लाहा लोहति पयं । तपसी मासखमणादीक सा धुने निमंत्रणा पूर्वक । खवग निमंतण पुव्वं खातो थको केवलज्ञान प्रते । झुंजतो वरनाणं ।
।