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१४३ तेत्रीस गुरुस्थानकीया पंनर जातीना परमाधामी न थाय देवपद न पांमे।
जुगलीक मनुष न थाय ॥ तायत्तीससुरत्तं। परमाहम्मिय जुयलमणुयत्तं॥ संनीनश्रोत लब्धी तथा। पुर्वधरनी लब्धी न पांमे आहारक
लब्धी पुलाक लब्धीपणु न पांमे ॥३॥ संनिन्नसोय तह। पुव्वघरा हारय पुलायत्तं ॥३॥ मतीज्ञान श्रुतज्ञानादिकनी सुपात्रे दान नावे न दे समाधी लब्धी न पांमे।
पणे मरण न थाय ॥ मश्नाणाश्सुलघी। सुपत्तदाणं समाहिमरणतं ॥ वीद्याचारण झंघाचारण ए बेल खीराव लब्धी न पांमे अक्षी ब्धी मधुसरपालब्धी न पांमे। मागसी लब्धी न पांमे ॥४॥
चारण दुग महुसिप्पय। खीरासव खीणठाणत्तं ॥४॥ तीर्थंकर तीर्थंकरनी प्रतीमा। सरीरना नोगादी कारणमां पण
नावे वली॥ तिबयर तिवपमिमा।तणु परिनोगाइ कारणेवि पुणो॥ प्रथवीकायादीपणाना नाव अनव्य जीव जे ते न पांम्यो वा पांमे पण।
नोगमां नाव्यो ॥५॥ पुढवाश्य नामिवि। अनव्वजीवहिं नोपत्तं ॥५॥ चक्रवर्तीनां चन्दरत्नमां पिण पांमे नही वली वीमानना स्वां नावे।
मीपणाने॥ चन्दस रयणतंपि। पत्तंन पुणो विमाणसामित्तं ॥ समकीत सम्यक्ज्ञान चारी तपादी गुणना बाझ अभ्यंतर जा त्र न पांमे।
व प्रते न पांमे नाव बे न पांमे॥६॥ सम्मत्त नाण संयम। तवाइ नावा न नावदुगे॥६॥