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________________ %3 । १३४ तुटेगुणे जह धणु करणं। हबामले वाय अवस्स तेणं हए अरे जीव सांनल चपल स्वनाव। मुक समस्त स्वजन सरीरादि क बाझ पदार्थ नाव ॥ रेजीव निसुणि चंचल सहाव। मिल्हेविणु सयलवि बस मुक नवनेदे धनादिक परीग्रह वीवीध समोह । नव नेत्र परिग्गह विवह जाल। संसारीक जे अर्थ ते सहु दे इंद्रजाल तंत्रप्रयोगी ॥३०॥ संसार अनि सहु इंदिवाल ॥७०॥ पीता पुत्र मीत्र घर स्त्री ए सर्व थयां जे कुटंब । | पिय पुत्त मित्त घर घरणि जाय । ते आ लोक संबंधी सर्व आपणा सुखने अर्थे जे स्वनावे ॥ इहलोअ सव्व निय सुह सुहाव ॥ पण नथी कोइ तुजने सरण वा रक्षक हे मूर्ख। । नवि अनि कोइ तह सरणि मुरक। एकलो सहीस तिर्यंच तथा नारकीनां दुःख प्रते ॥ ७१ ॥ इक्कनु सहसि तिरि नरय दुक ॥७॥ माननी अणी नपर जेम सना अल्पकाल रहे बालंब्यो थ पाणीनो बींदुन। को॥ ___ कुसग्गे जह नस बिंदुए। थोवं चिप लंब माणए॥ एम मनुष्यनु जीवीतव्य वा ते माटे समयमात्र प्रनु कहे जे हे यायुषु थोमु रहे। गौतम न करीस प्रमाद ॥७॥ एवं मणुाण जीविअं। समयं गोअम मापमायए। |समस्त पण बुझो समझो कीम बुझवु नीचे पण वली दुर्लन ॥ m -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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