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१३५ नथी बुझता वा समझता। __ संबुशह किं नबुझह। संबोही खलु पिच दुनहा॥ नही नीचे पाबायावे रात दिवसा नही सुलन वली जीवीतव्यपणु७३ | नोहु वणमंति राईनानो सुलहं पुणरावि जीवी॥७३॥ बोकरां तथा वृध वा वमेरा तथा गर्नमा रहेला पीण चवे जो वा देख।
वा मरे मनुष्य ॥ | महरा वुढाथ पासह। गतबावि चयंति माणवा॥ सीचाणो पक्षी जेम बटेरु एम आयुखु क्षय थये तुटी जाय पक्षीने ग्रहण करे। ॥७ ॥
सेणे जह बहियं हरे। एवं आन्खयंमि तु॥४॥ त्रणनुवनमा संसारीप्राणी म देखीने रोके वा यंत्रे जे नर न रता।
थापणा अात्माने॥ तिहुण जण मरंतं। दण निअंतिजे न अप्पाणं॥ तथा पाडो न वीरमे प्रमा धीकार धीकार धीठाइपणवाला ते दथी तो।
जीवोने ॥७॥ विरमंतिन पावा धि घी धितणं ताणं ॥७॥ नही नहीं बोलो वा कहो जे जीव बंधाया ओ नीवम वा
चीकणां कमें॥ मामा जंपह बहुअं। जे बघा चिक्कणेहिं कम्मेहिं॥ सर्वे ते जीवने थाय सुं। हीतकारी नपदेश पण घणा दोष नणी७६
सव्वेसि तेसि जाय। हिन्वएसो महा दोसो॥७॥ करीस ममता धन स्वजन। वैनव प्रमुखने वीषये अनंता दुः
खने वीषे तो॥ कुणसि ममत्तं धण सयण। विहव पमुहेसु णंत दुकेसु॥