SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३३ |जे तरस नपसमावाने अ समुद्रोनां पाणीथी पण न थाय वा थे समस्त। __ न सके ॥६॥ जं पसमे सव्वो। दहीण मुदयं न तीरिजा ॥५॥ होय वा वरते अनंतीवार। संसारे नमतां तेवी क्षुधा वा नु ख पण तेहवा प्रकारनी॥ अासी अणंत खुत्तो। संसारे तेनुहावि तारिसीया॥ जे नुपसमावाने समस्त पुद्गलना समोहे करी पण न सकीइं वा सघला। वा न सके ॥६६॥ जं पसमे सव्वो। पुग्गल कानवि न तरिका ॥६६॥ करीने अनंताई। जन्म मरण परावर्तन सदाय॥ काऊण अणंताई। जम्मण मरण परिग्रहण सयाज्ञा दुःखे करीने मनुष्यपणु। जदी वाजेवारे पांमे जथा इबाइंजीव ६७|| दुखण माणुसत्तं । जश् लहर जहि चिअंजीवो॥६॥ ते तीम दुःखे पांमवा यो वीजलीनीपरे चपल वली मनुष्य ग पांम्यो। पां॥ । तं तह दुनह लंनं। विऊलया चंचलंच मणुअत्तं ॥ धर्ममां जो वा जे सीदाय। ते कापुरूष्य वा कायरपुरूष्य नही ते सुपुरूष्य ॥६॥ धम्ममि जोवि सी।सो कानरिसो न सुपुरिसो॥६॥ मनुष्यनव वा जन्म रूप कीनारो जिनेश्वरनो धर्म न करयो जे पांमे थके। णे जीवे ॥ माणुस्स जंम्मे तमि लघएणं । जिणंद धम्मो न कनजे टुटेली पणउनु जेम धनुष धनुष हाथ घसवा जेवू अवस्य [॥ धरने। थाय तेणे ॥६॥ -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy