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१३० रूप तथा वेष करीने। परावर्त करे जीव ॥६॥ __ अनुन्न रूव वेसो। नमुव्व परित्तएजीवो ॥६॥ नरकने वीषे दश प्रकारे ए वेदनानी अोपमा नही अस्याता क्षेत्रवेदनादिक। घणीज ॥
नरएसु वेयणा। अणोवमान असाय बहुला॥ रेबापमा जीव तें पामी वा नोगवी। अनंतीवार घणा प्रकारनी॥१॥
रेजीव तएपत्ता। अणंत खुत्तो बहुविहाना॥ देवतापणे मनुषपणे। परना अजीयोगपणे प्राप्त थइने॥
देवत्ते मणुप्रते। परानिगत्तणं वगएणं॥ धाकरां बीहामणां दुःख घ अनंतीवार समस्त अनुनव्यां वा या प्रकारनां।
नोगव्यां ॥६॥ नीसणं दुहं बहुविहं। अणंत खुत्तो स मणनूअं॥६॥ तिर्यंचगतीने वीपे पांम्यो। बीहामणी घणी मोटी वेदना अनेक
प्रकारनी॥ . तिरिअगर अणुपत्तो। नीम महा वेत्रणा अणेगविहा॥ जन्म मरणरूपीआ रहट कुवे। अनंतीवार नम्यो वा फस्यो ॥३॥
जम्मण मरण रहहे। अणंत खुत्तो परिमि॥३३॥ जेटलां केटलांक दुःख। सरीरसंबंधी मनसंबंधी वा संसारमा
जावंति के दुका। सारीरा माणसाव संसारे॥ पांम्यो तें अनंतीवार कीहां। जीव संसाररूप कतार वा अटवीमा ६४
पत्तो अणंत खुत्तो। जीवो संसार कंतारे॥६॥ तरशा अनंतीवार । संसारमा तेवा प्रकारनी हे जीव तुजने होती हवी तण्णा अणंत खुत्तो। संसारे तारिसी तुमं अासी॥
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