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२३१ धन धान बानुषण श्रादे नला स्वजन कुटंब मुकीने पण जीव सर्व लक्ष्मी।
जाय ॥५६॥ धन धन्नाहरणाई। वर सयण कुमंब मिल्हेवि॥५६॥ हे जीव वस्यो पर्वतने वीषे त गुफाने वीषे तथा वस्यो समुद्रमा था वस्यो। । वसिअंगिरीसु वसिअं। दरीसु वसिधे समुहमतंमि॥ व्रक्षना अपने वीषे वस्यो। संसारमा फरतां वा भ्रमण करतां॥५॥ | रुक ग्गेसुअ वसिअं। संसारे संसरंताणं ॥५॥ हे जीव ते केहवा केहवा नव कीमो थयो पतंगीयो थयो मनुष करया देवता थयो नारकीथयो। वेष थयो ।।
देवो नेरश्नत्तित्र। कीम पयंगुत्ति माणसो वेसो॥ नला रूपवंत थयो वीरूप स्याता सुखनो नोगी थयो अस्याता वंत थयो।
दुःखनो जोगी थयो ॥५॥ ___ रूवस्सी विरूवो। सुह नागी दुक नागीश्रा राजा थयो द्रुमक वा नीखा वली एज जीव माल थयो एज री थयो।
वेदनो जाण ब्राह्मण थयो। रानत्ति दुमगुत्तित्र। एस सपागुत्ति एस वेब विक स्वामी थयो दास थयो पु खल वा दुर्जन थयो नार्धन थयो धन जनीक थयो। वंत थयो इत्यादिक प्रजाय पाम्यो।
सामी दासो पुऊो । खलुत्ति अधणो धणवत्तिपणा नवी वा नथी वरततो कोइ नी आपणां कर्म ज्ञानावर्णिादे जेह यम वा नीचे।
वांरच्यां बांध्यां ते सरखी करी चेष्टा॥ नवि अनि कोश नियमो। सकम्म विणिविसरिस कय अन्य अन्य वा जुदां जुदां नट वा नाटकीयानी परे [चिन॥
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