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________________ । । - - २३० पत्तेवि तंमिरे जी। कुणसि पमायं तयंतुमं चेव॥ जे प्रमादथी नवरूप बांध फरीने पण पम्यो थको दुःख पांमी ला कुवामा। स ॥५॥ जेणं नवंध कूवे। पुणोवि पनि दुहं लहसि ॥५॥ समीप पांम्यो श्री जिनधर्म। ते धर्म न समाचरयो प्रमाद दोस ना वसथी॥ न्वलघो जिणधम्मो। नय अणुविन्नो पमायदोसुणं॥ हा इति खेदनी वात हे जीव सुघणु आगल पण सोचीस॥५३॥ आपे थापणो वैरी। हा जीव अप्पवेरिन। सुबहुं पर विसूरहिसि ॥५३॥ ॥सोच वा पश्चाताप करसे ते प न थके मरण वा मरण श्रा रांक बापमा। वे थके ॥ सोयंतिते वराया। पहा समुवठिमि मरणंमि॥ पाप तथा प्रमादना वसथी। न संच्यो वा न मेलव्यो जे जीवे जिनधर्म ॥५॥ पाव पमाय वसेणं। न संचिनजंहिंजिणधम्मोपा धीकार धीकार धीकार सं देवता मरण पामीने जे तिर्थच था सारना अथीरपणाने। य॥ धी धी धी संसारे। देवोमरिकण जं तिरिहोई॥ वली मरीने राजानो राजा पचे नरकनां दुःखरूप अग्निनी झा चक्रवर्ती श्रादे। लमां ॥५॥ मरिकण रायराया। परिपच्च नरयजालाए ॥ जाइं अनाथ जीव। जेम वक्षनु फुल पवनथी कीहांई जा य तीम कर्मरूप पवने हणायो थको॥|| जाइ प्रणाहो जीवो। दुमस्स पुप्फ व कम्मवाय हन॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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