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नयन वा आरव्योनां बांसुनु प्रमाण समुद्रोनां पाणीथी पण पाणी पण तेहखें। अतीघणु थाय ।
नयणोदयंपि तासिं। सागर सलिलान बहुरं हो॥ गल्युं वा झरघु नवोनवे रो मातायो अनेरी अनेरी वा अन्य ती थकी।
अन्यनुं ॥४॥ | गलियं रुयमापीणं। माकणं अन्न मन्नाणं ॥४॥ जे नरकने वीपये नारकीले दुःख पांमे अती श्राकरां रौद्र अंत|| ते।
रहीत॥ जं नरए नेरश्त्रा। दुहाई पावंति घोरणंताई॥ ते दुःख थकी अनंतगुणु। नीगोदमांही दुःख होय ॥४॥
तत्तो अणंतगुणिग्रं। निगोत्र मसे दुहं हो॥४॥ ते पण नीगोदमांही वा म वस्यो वा रह्यो अरे जीव नाना प्र ध्ये।
कारनां कर्मने वसथी ॥ तमि वि निगोश्रमझे। वसिन रे जीव विविह कम्म वसा घणां सहन करतो याकरां अनंतां पद्गल परावरतन करयां जा दुःख प्रते।
वत् अनंतो काल ॥५०॥ विसहंतो तिक दुहं। अणंत पुग्गल परावते ॥५॥ हे आत्म नीकल्यो कीमहीके पाम्यो मनुषपणु अरे जीव ॥ करी तीहां थकी। ॥ नीहरिश्र कहवि तत्तो। पत्तो मणुअत्तणं परिजीव॥ तीहां पीण जिनस्वरे शुद्ध पांम्यो चिंतामणि रत्न सरीखो धर्म कह्यो ते।
॥५१॥ तबवि जिणवर धम्मो। पत्तो चिंतामणि सरिबो॥५१॥ पांम्यो पण ते धर्म अरे जीव हवे। करेले प्रमाद तेहमां तुं नीश्वे वली॥
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