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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कर्मवि पाकः ॥ ४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छस्संघयणा जाण, संद्वाणावि य हैवंति छच्चेव । वण्णाईण चउक्कं, अगुरुलहुवघायपरघायं ॥ ७७ ॥ अणुपुत्री चउभेया, उस्सासं आयवं च उज्जोयं । सुहअसुहविहायगई, तसाइवीसं च निम्माणं ॥ ७८ ॥ तित्थयैरेण य सहिया, सत्तट्ठी एवं हुंति पयडीओ । सम्मा मीसेहि विणा, तेवन्ना सेसकम्माणं ॥ ७९ ॥ एवं विद्युत्तरस्यं बंधे पयडीण होइ नायवं । बंधणसंघायावि य, सरीरगहणेण इह गहिया ॥ ८० ॥ वंधण या पंच उ, संघायावि य हवंति पंचेव । पण वण्णा दो गंधा, पंच रसा अट्ठ फासा य ॥ ८१ ॥ दस सोस छबीसा, एया मेलेहि सत्तसट्टीए । तेण उई होइ तओ, बंधणभेया उ पण्णरस ॥ ८२ ॥ सहं छूढेहिं, तिगअहियसयं तु होइ नामस्स । एएसिं तु विवागं, वुच्छामि अहाणुपुवीए ॥ ८३ ॥ नारयतिरियनरामरगइभेया चउविहा गई होइ । एसा खलु ओदइए, होइ हु भावे जओ आह ॥ ८४ ॥ जीऍ उदएण जीवो, नेरइओ होइ नरयपुढवीए । सा भणिया नरयगई, सेसईओवि एमेव ॥ ८५ ॥ इगदुगतिगचउरिदियजाई पंचिंदियाण पंचमिया । खयउवसमिए भावे, हुंति हु ऐया जओ आह ॥ ८६ ॥ एfiदिए जीवो, जस्सिह उदएण होई कम्मस्स । सा एगिंदियजाई, जाईओ एव सेस उ ॥ ८७ ॥ १ “तद्देव” इति पाठः । २ " - यरेणं स-" इति । ३ "बंघणपयडीण" इति । ४ " भेया" इति । ५ "जाइ" इति । ६ “सेसावि” इति ॥ For Private And Personal Use Only कर्मग्रंथः श ॥ ४ ॥
SR No.020557
Book TitlePrachin Karmgranth Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1917
Total Pages476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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