________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कर्मवि
पाकः
॥२॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नरस य तिरिए य, तेसु य दुक्खाइँ णेगरूवाई । जं उंवभुंजइ जीवो, सो उ विवागो असायस्स ॥ ३२ ॥ एयमिह वेयणीयं, चउत्थकम्मं तु होइ मोहणियं । तं मज्जपाणसरिसं, जह होइ तहा निसामेह ॥ ३३ ॥ जह मज्जपाणमूढो, लोए पुरिसो परवसो होइ । तह मोहेणवि मूढो, जीवोवि परवसो होइ ॥ ३४ ॥ मोहेइ मोहणीयं, तंपि समासेण भण्णए दुविहं । दंसणमोहं पढमं चरित्तमोहं भवे बीयं ॥ ३५ ॥ दंसणमोहं तिविहं, सम्मं मीसं च तह य मिच्छत्तं । सुद्धं अद्धविसुद्धं, अविसुद्धं तं जहाकमसो ॥ ३६ ॥ केवलनाणुवलद्धे, जीवाइपयत्थ सद्दहे जेणं । तं संमत्तं कम्मं, सिवसुहसंपत्तिपरिणामं ॥ ३७ ॥ रागं नवि जिणधम्मे, नवि दोसं जाइ जस्स उदएणं । सो मीसस्स विवागो, अंतमुहुत्तं भवे कालं ॥ ३८ ॥ जिणधम्मंमि पसं, वहइ य हियएण जस्स उदपणं । तं मिच्छत्तं कम्मं, संकिट्टो तस्स उ विवागो ॥ ३९ ॥ जं पिय चरित्तमोहं, तं पि हु दुविहं समासओ होइ । सोलस जाण कसाया, नव भेया नोकसायाणं ॥ ४० ॥ कोहो माणो माया, लोभो चउरोवि हुंति चउभेया । अणअप्पच्चक्खाणा, पच्चक्खाणा य संजलणा ॥ ४१ ॥ कोही माणो माया, लोभो पढमा अनंतबंधी उ। एयाणुदए जीवो, इह संमत्तं न पावेइ ॥ ४२ ॥ जं परिणामो किट्टो, मिच्छाओ जाव सासणो ताव । संमामिच्छाईसुं, एसिं उदओ अओ नत्थि ॥ ४३ ॥
१ " तहिं भुंजइ" इति । २ "य" इति । ३ “होइ । दुविहं तु" इति । ४ " तंपि समासेण होइ दुविहं तु" इत्यपि । ५ "जओ" इति ॥
For Private And Personal Use Only
कर्मग्रंथः १॥
॥२॥