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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमार भोजदेव का बांसवाड़ा ताम्रलेख 289 22. भूत्वा सर्वमस्मै समुपनेतव्यमिति। सामान्यं चैतत्पुण्यफलं वु (बु)ध्वाऽस्मद्वंशजैरन्यै23. रपि भाविभाक्तृभिरस्मत्प्रदत्तधर्मा(म)दायोयमनुमंतव्यः पालनीयश्च। उक्तं च। व(ब)24. हुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः। यस्य यस्य यदा भूमितस्य तस्य तदा फल( लम्)। [5॥] 25. यानीह दत्तानि पुरा नरेन्द्रनानि धर्मार्थयशस्कराणिा निर्माल्य वांतिप्रतिमानि26. तानि को नाम साधुः पुनराददीत। [6॥] अस्मत्कुलक्रममदारमुदाहरद्भिरन्यैश्च दानमिदमभ्यनुमोदनीयं (यम्)। 27. लक्ष्यास्तडित्सलिलबुदबुद्दचंचलाया दानं फलं परयशः परिपालनं च॥ [70] 28. सर्वानेताम्भाविनः पार्थिवेन्द्रान्भूयो भूयो याचते रामभद्रः। 29. सामान्योयं धर्मसेतुर्नृपाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः ।। [8] इति कम30. लदलावुवि( बुबिंदुलोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितं च। सकलमिदमुदा31. हृतं च वु (बु)ध्वा न हि पुरुषैः परकीर्तयो विलोप्या॥ [9] इति संवत् 1076 माध सुदि 5 32. स्वयमाज्ञा। मंगलं महाश्रीः। स्वहस्तोयं श्रीभोजदेवस्य। ओम्। सृष्टि के लिये जगत् के बीजांकुर की आकृति वाली चन्द्रकला को सिर पर धारण करते हैं, उन आकाश के केशों वाले शिवजी की जय हो।1 काम के शत्रु (शिव) की वह जटा आपका कल्याण करे जो प्रलयकालीन स्वच्छन्द बिजली के घेरे सी पीत वर्ण की है। 2 परमभट्टारक महारा4. जाधिराज परमेश्वर सीयकदेव का चरणानुसा परमभट्टारक 1. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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