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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 286 32. 33. www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीन भारतीय अभिलेख तथा कीर्ति में वृद्धि होती है। 82 तथा जिस नोहलेश्वर के मठ में श्रीमान् अघोरशिवाचार्य हुए उन्होंने कभी भिक्षावृत्ति, कभी शाक का उपयोग, कभी मूल का आहार और कभी कन्द का भोजन किया। परंतु रज के गहनतम से रहित शिव-ज्योति का अन्वेषण करता हुआ कभी विषयवेग के विष से ग्रस्त नहीं हुआ । 83 उसने यह प्रशस्ति एकत्र की श्रीत्रिपुरी, सौभाग्यपुर, लवणनगर, दुर्लभपुर, विमानपुर के निवास रक्षा करते हुए काठ के वृषभदेव प्रतिदिन (यहां ) लाने चाहिये जो देव (शिव) के धर्माचार के लिये मनोरम लकड़ी से बने । 84 सुश्लिष्ट बन्ध से रचित यह पूर्वोक्त कृति (काव्य तथा मंदिर) एवं कीर्ति कल्पान्त तक बनी रहे जिसकी बड़े विस्मय से कवि राजशेखर ने प्रशंसा की। 85 श्री सीरुक कायस्थ की करणिक (क्लर्क) धीर के पुत्र ने यह प्रशस्ति लिखी जिसका नाम नाई था। तथा कुशल सूत्रधार ( कारीगर) सङ्गम के पुत्र नोन्न ने इसे उत्कीर्ण किया 186 For Private And Personal Use Only यह व्यक्तिगत दान न तो (बेचा) खरीदा जाय तथा न (भेंट में) प्रदान किया जाय।
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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