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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 276 प्राचीन भारतीय अभिलेख कायस्थश्रीसीरुकस्याकरणिकधीरस्सुतेन तुनाईनाम्ना प्रशस्तिरालिखिता। सत्सूत्रधारसंगमतनूजनोन्नेन चोत्कीर्णा186॥ स्वकीयदायादक्रयप्रदानम्॥ द ....॥ 1. सिद्धि। ओम् शिवजी को प्रणाम। शम्भु का वह जटाजूट आपकी रक्षा करे जो सारे मंगल का निधि है, जिस पर मन्दाकिनी का भ्रमी कर शुभ्र आकाश मण्डल से बहता जल, प्रगाढ़ रूप से गांठ बंधा नागराज की फैली फण से फुत्कार करते भयंकर खुले मुख की श्वेत आतपत्र (छात्र) का अनुकरण हो रहा है। और भी चन्द्रचूड़ के लोचन की अग्नि की शिखा आपकी रक्षा करे जो कामदेव का मित्र समझकर मानो चन्द्र को जलाने उर्ध्वमुखी हो गयी। 2 शिवजी की जटा रूपी वन के एकमात्र कुसुम चन्द्रमा आपकी रक्षा करे जिसे बचपन के कारण कार्तिकेय खेल के लिये हठपूर्वक मांगते हैं, देवी के साथ पासों से जुआं खेलते समय जो शिवजी का दांव (पांसा) है तथा पार्वती जिसे (शिवजी से) कृत्रिम कोप-व्यवहार में अस्त्र बना लेती है। 3 सब दूर प्रसार पाती, संचलन में दक्ष, सक्षम भुजाओं से उत्पन्न प्रचण्ड वायु के वेग से दिशाएं हटा दी गयीं। जिनके प्रशस्त नर्तन-रत चरणों से भूमि के नीचे दब जाने से आकाश और अधिक समुन्नत हो गया है। ऐसा त्रिपुरविजयी शिव का अप्रतिहत मनभावन नृत्याघात आपकी रक्षा करे। 4 सोम (चन्द्र) से उत्पन्न इस वंश में वाणी को स्थान देते हुए मैं मूढतावश हाथों से आकाश माप रहा हूं। 5 जिसकी उन्नति का यहां बखान करना है इस महान् चन्द्र वंश में उत्पन्न होने वालों के योग्य मेरी वाणी में उज्ज्वलता भी नहीं है। अथवा देखो! प्रकृति से ही दिग्गज की दानच्छटा कृष्ण होने पर भी क्षीरसागर के सम्पर्क में आने पर क्या उसकी कान्ति नहीं धारण करती है। 6 अपनी आभा से भूमि को शुभ्र करने वाली कान्ति का सदन अत्रि के नेत्र से उत्पन्न हुआ। लोकालोक पर 4. आरुढ होकर वह गहन अंधकार का विनाश हेतु जिसका नाम सोम है उसी For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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