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तेरहवां शिलालेख-शाहबाज़गढ़ी
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शाहबाजगढ़ी-पेशावर (पाकिस्तान), ई०पू० तृतीय शती भाषा-प्राकृत (पालि) लिपि-खरोष्ठी (अठ) वष अ (भि सि) त(स) (देवन) प्रि (अ) स प्रि (अ) द्रशिस (ओ) क (लिग) वि(िज)ता दिअढ- म(त्रे) प्रण-शत-(सह) से (ये) ततो अपवुढे शत-सहस्र-मत्रे तत्र हते बहु-तवत(के) (व) (मुटे) ततो प(च) अ(धु )न ल(धे )षु (कलिगेषु) (तिवे) (ध्रम-शिलन) ध्र(म-क) मत धमनुशस्ति च देवनं पियसा सो (अ)स्ति अनुसोचन देवन (प्रिअ)स विजिनिति कलिग(नि)। अविजितं (हि) (वि)जिनमनो यो त(त्र) वध व मरणं व अपवह व जनस तं बढं (वेदनि(य) मतं) गुरुमत (') च देवनंपियस। इदं पि चु (ततो) गुरुमततरं (देवनं) प्रियस ये तत्र वसति ब्रमण व श्रम(ण) व अ (') जे व प्रषंड ग्र (ह)थ व येसु विहित एष अग्रभुटि सुषुष मत-पितुषु सुश्रुष गुरुन सुश्रुष मित्र-संस्तुत-सहय अतिकेषु दसभटकनं सम्मप्रतिप(ति) द्रिढ-भतित तेष तत्र भोति (अ) प (ग्र) थो व वधो व अभिरतन व निक्रमणं। येष
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कार्पस, 1, पृष्ठ 66--701
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