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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 238 प्राचीन भारतीय अभिलेख (62)श्रीभोगटस्य पौत्रेण श्रीमत्सुभटसूनुना। श्रीमता तातटेनेदं उत्कीर्णं गुणशालिना। (सम्मुख) 1. ओम् कल्याण हो। वे दशबल (बुद्ध) आपकी रक्षा करे जो वज्रासन (की मुद्रा में आसीन) हैं, कामदेव के विभिन्न प्रलोभनों के विजेता हैं, श्री के समान सर्वज्ञता को प्राप्त, महाकरुणा देवी से परिपालित और समस्त दिशाओं के विजेता हैं। 1 जैसे मनोरम लक्ष्मी 4. का उत्स समुद्र है, जगत् को आनन्दित करने वाली ज्योत्स्ना का उद्भव स्थान चन्द्रमा है; उसी प्रकार नृपों की उत्तम सन्तति का मूल, सारी विद्याओं में निष्णात, दयितविष्णु उत्पन्न हुआ। 2 तब सागर तक फैली पृथ्वी को अपनी महती कीर्ति से अलंकृत करता हुआ शत्रु विनाशक प्रशंसनीय श्रीवप्यट हुआ। 3 मात्स्यन्याय (जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत) को हटाने के लिये प्रकृति ने लक्ष्मी से जिसका पाणिग्रहण करवा दिया। 7. वही उस श्रीवप्यट का पुत्र श्री गोपाल था जो राजाओं के सिर की चूडामणि (सिरमौर) था। आश्चर्य नहीं यदि अमित ज्योत्स्ना रूपी लक्ष्मी की शुभ्रता से (चमकती) पूर्णमा की रात, उसी की सनातन कीर्ति-राशि का अनुकरण कर रही हों। 4 जैसे चन्द्रमा की रोहिणी, प्रतापराशि अग्नि की स्वाहा, 9. शिव की पार्वती, कुबर की भद्रकन्या भद्रा, इन्द्र की पौलोमी (शची), विष्णु, की प्रिय पत्नी लक्ष्मी है उसी 10. प्रकार उस नृप की विनोद पुत्री श्रीदेवदेवी थी।5 उनसे श्री धर्मपाल उत्पन्न हुआ जिसके चरित एवं शौर्य की प्रशंसा की जाती है। 11. सारी पृथ्वी के राज्य का एकछत्र शासक . . . . हुआ वह राजाधिराज था। For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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