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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यशोवर्मदेव का नालन्दा शिलालेख 199 21. विभवावप्यनालोच्यभारं हृद्यामेतामुदारां त्वरितमकुरुतामप्रपञ्चां प्रशस्तिं वाञ्छेतां किन्न पंगू शिखरितरुफलावाप्तिमुच्चैः करेण।[15] जिसने प्राणियों की सांसारिक स्थिति एवं बन्धन से मोक्ष का विचार किया, जिसने इच्छुकों को दयामय होकर जबरदस्ती अफ्ना शरीर भी प्रदान कर दिया, जिसके चरण-कमल पर इन्द्रसहित देवताओं ने अपना सिर घीसा 2. उस सारे पदार्थ के तत्त्व के वेत्ता बुद्ध को नित्य प्रणाम। 1 सारे नृपों के सिर पर पैर रख जो अमित तेजस्वी उदित हुआ, सूर्य के समान खड्ग किरणवितान से जिसने शत्रुओं के सम्पूर्ण-घोर अंधकार को विदीर्ण कर दिया। 3. सारी धरा रूपी पद्मिनी के विकास के कारण सूर्य के समान जो सारी दिशाओं में तप रहा है, वही प्रख्यात लोकपाल यह यशोवर्मदेव है। 2 उसी प्रतीतिकिन (!) उत्तर (देश) के मन्त्री मार्गपति का यह, उस नृप का परम कृपाप्राप्त, उदार उद्देश्य से सम्पन्न पुत्र मालाद बन्धुमती का पुत्र, शत्रुओं का दमन करने वाला, विद्वान्, दीनों की आशा पूर्ण करने में अद्वितीय पटु, धीर एवं पवित्रवंश से युक्त था। 3 जिसने उन्नतिशील शत्रुओं की पृथ्वी पर बहते दान (मद) जल को पीने से उल्लसित मदमस्त भंवरों से युक्त गजराज के सिर फोड़ कर नृपों की लक्ष्मी प्राप्त की, उन सारी नगरियों का उपहास करने वाली नालन्दा नगरी श्वेत बादल के समान शुभ्र चमकीले चैत्यांशु (चैत्यध्वज) के समूह वाला श्रेष्ठ आगम, कला आदि में प्रथित विद्वानों को प्रदान किया। 4 जिसमें मेघों को छने वाली शिखर श्रेणी से युक्त अनेक समुन्नत रहने वाली माला के समस्त निर्माण किया। विधाता ने विविध रत्न किरण के जाल से सम्पन्न प्रासाद एवं देवालय, विद्याधर के समूह 8. की रमणीय बस्ती को धारण करने वाली मनोरम नगरी निर्मित की। 5 सारे शत्रुओं को जीतकर, यहां, असह्य पराक्रम के स्नेही नृप बालादित्य ने सारी पृथ्विी का भोग कर, 5. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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