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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदित्यसेन का अफसड शिलालेख 189 24. 22. कपालः (॥) आजौमत्तगजेन्द्रकुम्भदनलस्फीतस्फुरदोर्युगो ध्वस्ताने( ? )क( ? )रिपुप्रभाव (. . .) यशोमण्डलः। न्यस्ता-शेषनरेन्द्रमौलिचरणस्फारप्रतापान23. लो लक्ष्मीवान्समराभिमानविमलप्रख्यातकीर्तिप:येनायं शरदिन्दुविम्वधवला प्रख्यातभूमण्डला लक्ष्मीसंगमकांक्षयाय सुमहती कीर्तिचिरं कोपिता। याता सागरपारमद्भुततमा साविदिमस्तुपल्यवैरादहो तेनेदं भवनोत्तम क्षितिभुजा विष्णोः कृते कारित। (26) तज्जनन्या महादेव्या श्रीमत्या कारितो मठः। धार्मिकेभ्यः स्वयंदत्तः सुरलो 25. कगृहोपमः॥(27)शंखेन्दुस्फटिकप्रभाप्रतिसमस्फारस्फुरच्छीकर नक्रक्रान्ति-चलत्तरङ् गविलसत्पक्षिप्रनृत्यत्तिमि। राज्ञा खानिमतद्भुतं सुतपसा पेपीयमानं 26. जनस्तस्यैव प्रियभार्यया नरपतेः श्रीकोणदेव्या सरः॥ (28 )यावच्चन्द्रकला हरस्य शिरसि श्रीः शागिणो वक्षति व(ब्रह्मास्ये च सरस्वती कृत27. ( - - - - - -(1) (भोगे ) भूर्भुजगाधिपस्य च तडिद्यावद् -घनस्योदरे तावत्कीर्तिमिहातनोति धवलामादित्यसेनो नृपः।(29) सूक्ष्मशिवेन गौडेन प्रशस्तिविकटाक्षरा॥(।) 28. (- - - - ) मा (?) मिता सम्यग्धार्मिकेण सुधीमता। (30) 1. ओम्। एक सहस्र हाथियों की शक्तिशाली सेना से सम्पन्न, विद्याधर (अर्धदेवजाति अथवा विद्वानों) से युक्त, उच्चकुलीन (श्रेष्ठ बांसों से युक्त), दृढ़ तथा समुन्नत पर्वत के समान राजा श्रीकृष्णगुप्त था। गर्वशील शत्रुओं के मदमत्त गजसमूह के कुम्भ (सिर) को कुचलते हुए, असंख्य शत्रुओं के प्रताप पर धनुष से विजय पाकर जिसके सिंह का आचरण सम्पन्न किया। 1 कलासम्पन्न, कलङ्क तथा For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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