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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 164 प्राचीन भारतीय अभिलेख 21. 19. चमकती खड्ग तथा ज्योति कला की वेत्ता बाहु ने चाहा गया हूं यह जानने वाले कामी के समान कामिनी को अपने वक्ष का गाढ़ आलिङ्गन देकर, प्रायः परपुरुषों का आश्रय लेती है- इस भाव से त्याग दिया। 19 नम्र उन्नति करने वाले उसने, . जब वह आखेट पर था मनोस्मता की भूमि शिवजी का एक भग्न मंदिर देखकर उसे यथेच्छ ऊंचा बनवाया जो चंद्रमा के समान शुभ्र तथा क्षेमेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। 20 शत्रुओं के विनाश करने पर 611वें शरद् (संवत्) में भूमिपति श्रीईशानवर्मा के (शासन काल में)...। 21 कोटि (छोर) पर इन्द्रधनुष लगाये, नवजात गवल (अरने भैंसे) की कांति वाले मेघ जिस काल, बार-बार बिजली चमकाते धीर-गम्भीर गर्जन करते दिशाओं के छोर तक फैल जाते हैं। जब नूतन कुसुम-समूह से झुके कदम्ब के शिरों को 22. झकझोरते वायु बहने लगते हैं उस (वर्षा) काल में प्रलय करने वाले त्रिशूलधारी शिव का यह मंदिर बनवाया गया। 22 गर्गराकट के निवासी कुमारशांति के पुत्र रविशांति ने नृप (सूर्य वर्मा) के अनुराग से यह उपर्युक्त (प्रशस्ति) रची। 23 मिहिरवर्मा ने (इस प्रशस्ति को) उत्कीर्ण किया। For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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