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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 156 3. 5. प्राचीन भारतीय अभिलेख यह राजा प्रचुर गुणों से सम्पन्न है। सत्य, वीरता और दान आदि से जो पृथ्वी का न्यायपूर्वक पालन करता रहा। 3 जिसके कुल की कीर्ति का उदय हो चुका है ऐसे उस (तोरमाण) का पुत्र अपार विक्रम वाला पृथ्वीपति राजा मिहिर कुलनाम से विख्यात हे जो पशुपति शिवजी के सामने ही झुकता है। 4 विशाल और विमल लोचन वाला तथा कष्ट दूर करने वाली दृष्टि से सम्पन्न उस राजा को जब पृथ्वी का शासन करते हुए वर्धमान पन्द्रह वर्ष हो गये।5 तब चन्द्रकिरणों के हास से खिले कुमुद-उत्पल की गन्ध की शीतलता से आमोद के कार्तिक मास में जब सूर्य भी विमल सुशोभित होता है। 6 पुण्य वाणी के ध्वनिघोष से जब द्विजगण के प्रमुख स्तुति करते हैं जब तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त से सम्पन्न शुभ दिन। 7 मातृतुल के पौत्र और मातृदास के पुत्र जिसका नाम मातृचेट है और जो (इस) पर्वत के दुर्ग के पास ही रहता है। अनेक धातुओं से विचित्र गोप नामक रमणीय पर्वत पर पत्थरों का यह सूर्य-मंदिर बनवाया जो श्रेष्ठ मंदिरों में प्रमुख है। 7 माता-पिता तथा अपनी पुण्य-वृद्धि के लिए इस श्रेष्ठ पर्वत पर वास करते हुए राजा के चन्द्र की किरणों जैसी कांति से सम्पन्न हो सूर्य का श्रेष्ठ भवन (मंदिर) बनवाते हैं उनका स्वर्ग में तब तक निवास रहता है जब तक कल्पान्तर होता है। 1 सूर्य की भक्ति से जो सद्धर्म को ख्याति देता है और श्रेष्ठ कीर्ति सम्पन्न है और केशव नाम से जो विख्यात है-आदित्य द्वारा यह रचना की गयी। 12 जब तक शंकर के जटाजूट के गुल्म में चन्द्रमा चमकता रहे, जब तक मेरु पर्वत की तलहटी देवांगनाओं के चरणों से विभूषित रहे, जब तक नील मेघ के समान विष्णु वक्ष पर उज्ज्वल लक्ष्मी को धारण करते रहें तब तक इस पर्वत के शिखर पर यह प्रस्तर-प्रासादों में प्रमुख मंदिर मन मोहता रहे।। 13 6. 7. 8. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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