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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 151 शोधर्मा का मन्दसौर स्तम्भलेख 5 आलौहित्योपकण्ठात्तलवनगहनोपत्यकादामहेन्द्रा दागङ्गाश्लिष्टसानोस्तुहिनशिखरिणः पश्चिमादापयोधेः।सामन्तैर्यस्य बाहु-द्रविण-हृतमदैः पादयोरानमद्भिश्चूडा-रत्नांशु-राजि- व्यतिकर-शबला भूमिभागाः क्रियन्ते।।। स्थाणोरन्यत्र येन प्रणतिकृपणतां प्रापितं नोत्तमाकं यस्याश्लिष्टो भुजाभ्यां वहति हिमगिरिदुंग्गशब्दाभिमानम्। नीचैस्तेनापि यस्य प्रणतिभुजबलावर्जनक्लिष्टमूर्द्धा चूडा पुष्पोपहारैमिहिरकुलनृपेणार्चितं पादयुग्मम्।।6 7. गामेवोन्मातुमूर्ध्वं विगणयितुमिव ज्योतिषां चक्क्रवालं निर्देष्टुं मार्गमुच्चैर्दिव इव सुकृतोपार्जितायाः स्वकीर्तेः। तेनाकल्पान्त-कालावधिरवनिभुजा श्रीयशोधर्मणायं स्तम्भः स्तम्भाभिराम-स्थिर-भुज-परिघेणोच्छितिं नायितोऽत्र। 8. श्लाघ्ये जन्मास्य वंशे चरितमघहरं दृश्यते कान्तमस्मिन् धर्मस्यायं निकेतश्चलति नियमितं नामुना लोकवृत्तम्। इत्युत्कर्षं गुणानां लिखितुमिव यशोधर्मणश्चन्द्रबिम्बे रागादुत्क्षिप्तं उच्चैर्भुज इव रुचिमान्यः पृथिव्या विभाति॥8 इति तुष्टूषया तस्य नृपतेः पुण्यकर्मणः। वासुलेनोपरचिताः श्लोकाः कक्कस्य सूनुना॥७॥ उत्कीर्णा गोविन्देन। दिगन्त (दिशाओं के छोर) में रहने वाले दैत्य जिसके भीषण गर्जन के भय से व्यथित हो कांप उठते हैं। जो अपने शृंगों के आघात से पाषाणों से दृढ़ सुमेरु (पर्वत) में भी गुहा बना देता है, जिस पर पार्वती ने (स्नेह से साथ लगाकर) पञ्चांगुलि का चिह्न बना (अलंकृत कर) दिया है उस (नन्दी) वृषभ को धारण करने वाला, यह शूलपाणि (शिवजी) का समुन्नत केतु आपके शत्रुओं के प्रताप को नष्ट करे। 1 2. जिनमें गर्व का आविर्भाव हो गया है, जो उद्धत (अनम्र) आचार में पटु हैं; For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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