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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारगुप्त बन्धुवर्मा का मंदसौर शिलालेख 131 19. स्तन तथा जघन (जंघा) के गाढ़ आलिंगन से तिरस्कृत शीतल हिमपात काल में . . . .। 33 मालवों के गण की स्थापना से चार सौ तिरानवे वर्ष व्यतीत होने पर पीन पयोधरों के सेवन की (हेमन्त) ऋतु में . . .. .34 पौषमास के शुक्लपक्ष में त्रयोदशी के शुभ दिन माङ्गलिक विधि से यह प्रासाद (मंदिर) बनकर (प्राणप्रतिष्ठा आदि से) सम्पन्न हुआ। 35 20. तदनन्तर बहुत काल बाद अन्य शत्रु हूणादि (वायु) नृपों ने इस भवन का एक भाग खण्डित कर दिया, सो अब-36 अपना यश बढ़ाने के लिये उदार श्रेणी ने पुनः सूर्य के विशाल मंदिर का पुनरुद्धार करवाया। 37 जो बहुत ऊंचा, शुभ्र, अपने मनोहर शिखरों से मानो आकाश को छूता हुआ, यह भवन चन्द्र और सूर्य के उदयकाल की स्वच्छ किरणों का विश्राम स्थल बन गया। 38 21. पांच सौ उन्तीस वर्ष व्यतीत होने पर रमणीय फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया को-39 जब अशोक के वृक्ष, केतक, सिन्दुवार के वृक्ष तथा चंचल अतिमुक्तक एवं मदयन्तिका लता के सद्यः प्रस्फुटित पुष्पों से कामदेव अपने शरों को समृद्ध करता है। 40 मधुपान से प्रसन्न मधुप-वृन्द के गुञ्जन से जिस काल 'नगण' की मोटी शाखाएँ अनुगुञ्जित हो जाती हैं तथा जब रोध्र वृक्ष नव कुसुमों के उद्गम से अत्यन्त विषम तथा मनोरम हो जाते हैं। 41 चन्द्रमा से जैसे विमल आकाश एवं कौस्तुभ मणि से जैसे विष्णु का वक्षःस्थल सुशोभित होता है उसी प्रकार यह सारा विस्तृत एवं समृद्ध दशपुर नगर इस श्रेष्ठ भवन से सुशोभित है। 42 23. जब तक शिवजी विमल चन्द्रकला से पीत वर्ण की जटा-कलाप का वहन करते हैं और जब तक विष्णु खिले कमल की माला अपने कन्धे पर धारण करते हैं तब तक (सूर्य का) यह प्रशस्त भवन शाश्वत (स्थायी) रहे। 43 24. श्रेणी के आदेश और भक्ति से रवि का मन्दिर बनवाया गया तथा उपर्युक्त यह प्रशस्ति वत्सभट्टि ने सायास रची। 44 कर्ता, लेखक, वाचक, तथा श्रोता का कल्याण हो।।सिद्धि हो।। For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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