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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८७ दाढादिक लइ रत्न शुभ रची, सर्व सुरासुर इंद ॥ जगत० नंदीश्वर जिन माणक महिमा, करता भाव अमंद ॥ ॥ दोहा ॥ ॥जगतगुरु० ॥४॥ वर्द्धमान वचने तदा, श्री गौतम गणधार ।। देवशर्म प्रतिबोधवा, गया हता निरधार ।। १ ॥ प्रतिबोधी ते विप्रने, पाछा वलिया जाम ॥ तव ते श्रवणे सांभले, वीर लह्मा शिव धाम ।। २ ॥ ध्रसक् पड्यो तव ध्रासको, उपन्यो खेद अपार ॥ वीर वीर कही वलवले, समरे गुण संभार ॥ ३ ॥ पूछीश कोने प्रश्न हं, भंते कही भगवंत ।। उत्तर कुण मुज आपशे, गोयम कही गुणवंत ॥ ४ ॥ अहो त्रभु आ शुं कर्यु, दीनानाथ दयाल ॥ ते अवसर मुजने तमे, काढयो दर कृपाल ॥ ५ ॥ ॥ढाल चोथी॥ ॥ पंथीडा सदेशो देजो म्हारा नाथने ॥ ए देशी ॥ शासन स्वामी संत सनेहो साहिबा, अलवेश्वर विभु आतमना आधारजो ॥ आथडतो अहीं मूकी मुजने एकलो, मालिक किम जइ बेठा मोक्ष मोझारजो ।। विश्वंभर विमलातम व्हाला वीरजी ॥ए आंकणी ॥१॥ मन मोहन तुमे जाण्यु केवल मागशे, लागशे अथवा केडे ए जिम बालजो ॥ १ अत्यंत भावथी. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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