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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ऋषभदत्त निज तातजी, देवानंदा माय ॥ व्याशी दिवस संबंधथी, पहोंचाड्यां शिव ठाय ॥ ३ ॥ रौहिणेय अर्जुन प्रमुख. उधर्या अधम अनेक || निरुपम जिनपद नामने, वेदे एम विवेक ॥ ४ ॥ अस्थिक गाम प्रणित भूमि, श्रावस्ती पुर छेक || आलमका नगरी जह वस्या, चोमासुं एकेक || ५ ॥ ऋण चंपा वे भद्रिका, पट मिथिला शुभ वास ॥ वैशाली बाणिज्यमां, बार कर्यो चोमास ॥ ६ ॥ राजगृही नयरी रह्या, चोमासां दश चार || ५चरम चोमासु आविया, पावापुर मोझार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल श्रीजी ॥ राग मालकोश | जय जय वीर जिणंद जगतगुरु, जय जय वीर जिणंद || ॥ ए आंकणी ॥ कार्त्तिक मास अमावसी रजनी, स्वाति नक्षत्रनो चंद ॥ जगत सोल प्रहर देशना देई स्वामी, छठ तप करी सुखकंद । जगत १ पद्मासन रही एकाको प्रभु, पाम्या पद महानंद | जगत० भाव उद्योत गये गण भूपति, विरचे दीपक वृंद | जगत। २ ए अवसर सवी सुरपति आवी, वंदे पद अरविंद | जगत० करणी उचित सवि सुरमली करता, १० निर्भर निरानंद । जगत| ३ १ ठाम. २ रोहणीयो चोर. ३ अर्जुनमाली. ४ अनार्य देश. ५ छेल्लुं. ६ मोक्ष ७ अढार गण राजाओ. ८ समूह. ९ कमल. १० अत्यंत. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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