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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૮૮ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा वल्लभ तेथी टाल्यो सुजने वेगलो, भलं कर्यु ए त्रिभुवन जन प्रतिपालजो || विश्वंभर० ॥२॥ अहो हवे में जाण्युं श्री अरिहंतजी || निस्नेही वितराग होय निरधारजो || म्होटो छ अपराध इहां प्रभु माहरो श्रुत उपयोग में दीधो नही ते वारजो || विश्वंभर० ॥३॥ स्नेह की स धिग एक पाक्षिक स्नेहने एकज छं मुज कोड़ नथी संसारजो || सूरिमाणक इम गौतम समता भावता, वरिया केवल ज्ञान अनंत उदारजी || विश्वंभर विमलातम ||४|| ॥ दोहो || गौतम केवल ज्ञाननो, उत्सव अमर उदार ॥ करता पूरण कोडथी, जिनशासन जयकार || १ || सिद्धया साधु सात, साध्वी शत दश चार ॥ गया अनुत्तर आठसे, वीर तथा अणगार ॥ २ ॥ तीश वर्ष घरमा बसी, वली बेतालीश वर्ष ॥ पण धरम पाली सवि, आयुस व्होंतेर वर्ष || ३ || पार्श्वनाथ निर्वाणी, अढीसें वरशे सार || वीर जिनेश्वर शिव वर्या, कल्पसूत्र अधिकार ॥ ४ ॥ सिद्ध, बुद्ध मुक्तातमा, अनुपम सादि अनंत || ६अपुनर्भव सुख अनुभवे, भजो वीर भगवंत ॥ ५ ॥ १ स्नेहरहित. २ एकपखो. ३ चौदसे. ४ अनुत्तर वि. मानमां ५ चारित्र. ६ मोक्ष. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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