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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८६) उवालह--( उपा+लभ ) उलाहना देना ( भमना करण ) तुरुक्क-(तुरुष्क) तुरुष्क. वीसकद्द --(विश्वकद्रु मृगयाकुशलः शुनकः) मृग या कुशल कुत्ता (शिकारी कुत्रा) गोमाउ--(गोमायु ) शृगाल, गीदड़ ( कोल्हा, गिधाड) रोइ-( रोगिन) बिमार ( रोगी) कुक्कुर--(कुक्कुर ) कुत्ता ( कुत्रा) पच्चार--(दे. ) बुलाना पाचारण करणे बोलावणे ) ठक्क--(दे. ' रखना (ठेवणे) घट्ट-(भ्रंश) भ्रष्ट होना (पडणे) विन्भंती-(विभ्रान्ति ) भ्रान्ती ( भम ) चणअ--( चणक ) धान्यविशेष, मसुर. ( चणकहिमाम्बु-चणकगुल्येषु आस्तीर्णैर्वस्त्रादिभिः संभृत्य तुषारोदकमित्यर्थः । एतेन अतिशैत्यं द्योत्यते ।) विअईल-- ( विचकिल ) मल्लिका ( अवयवेषु पुलकमुद्रा । नयनयोर्मुकुलीभावः गात्रे सात्विक भावात् स्वेदसमृद्धिर्मनसि चाखण्डसच्चिदानन्दनपरब्रह्मसाक्षा त्कारो भवती ति भावः । ) तुम्हि- ( तूष्णीम् ) मौन, चुपकी (मौन, उगीच ) मणत्तणं-- ( ऊनत्वं ) न्यूनत्व ( कमीपणा ) गल्लूरणादिअं-- ( गल्लूरणादिकं व्याघ्रस्य भीषणगम्भीरकण्ठध्वनिर्गल्लूरण शब्दार्थः। ( वाध की भयंकर गर्जना (वाघाची भयंकर डरकाळी) किदग्ध--( कृतघ्न ) ( कृतघ्न. For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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